Wednesday, 22 May 2019

खेतड़ी नगर

खेतड़ी


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खेतड़ी
नगर
देशFlag of India.svg भारत
राज्यराजस्थान
जिलाझुन्झुनू
ऊँचाई484 मी (1,588 फीट)
जनसंख्या (2001)
 • कुल17,377
भाषा
 • आधिकारिकहिन्दी
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+५:३०)
पिन333504/333503
दुरभाष कुट0159
खेतड़ी नगर भारत के पश्चिमी प्रांत राजस्थान के झुन्झुनू जिले का एक कस्बा है। यह शेखावाटी का एक क्षेत्र है। वास्तव में खेतड़ी दो कस्बे हैं एक वह जिसे "खेतड़ी कस्बे" के रूप में जाना जाता है और जिसे राजा खेत सिंहजी निर्वान ने बसाया था। अन्य "खेतड़ी नगर" का कस्बा, जो खेतड़ी से लगभग 10 किमी दूर है। इसे 'ताँबा परियोजना' के रूप में जाना जाता है। खेतड़ी नगर का निर्माण भारत सरकार के एक सार्वजनिक उपक्रम हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड ने किया और उन्हीं के अधिकार में है।
यह नगर चारों तरफ से पर्वत द्वारा घिरा है तथा बहुत ही मनोरम है। यहाँ एक किला भी है। समीप में ही ताँबे की खदानें हैं जिनका मुगल काल में बड़ा महत्व था। बीच में यह खान एकदम बंद पड़ी थी। अब पुन: भारतीय ताँबा निगम की ओर से खान चालू की गई हैं और ताँबा प्राप्त किया जा रहा है।

प्रसिद्धि

खेतड़ी नगर की प्रसिद्धि इसकी प्रसिद्ध तांबे की खान के लिए है। इसकी एक और प्रसिद्ध कहानी विवेकानन्द को अमेरिका भेजने से सम्बंधित है तत्कालिन राजा ने इसका पूर्ण बंदोबस्त किया था।

विविदिषानन्द को राजा अजीतसिंह ने बनाया था स्वामी विवेकानन्द

राजा अजीतसिंह ने उनके सिर पर साफा बांधा व भगवा चोगा पहना कर नया वेश व नया नाम स्वामी विवेकानन्द प्रदान किया जिसे स्वामीजी ने जीवन पर्यन्त धारण किया। आज भी लोक उन्हें राजा अजीतसिंह द्वारा प्रदत्त स्वामी विवेकानन्द नाम से ही जानते हैं।
शी रियासतों के विलीनीकरण से पूर्व राजस्थान के शेखावाटी अंचल में स्थित खेतड़ी एक छोटी किन्तु सुविकसित रियासत थी, जहां के सभी राजा साहित्य एवं कला पारखी व संस्कृति के प्रति आस्थावान थे। वे शिक्षा के विकास व विभिन्न क्षेत्रों को प्रकाशमान करने की दिशा में सदैव सचेष्ट रहते थे। खेतड़ी सदैव से ही महान विभूतियों की कार्यस्थली के रूप में जानी जाती रही है। चारों तरफ फैले खेतड़ी के यश की चर्चा सुनकर ही विदेशी आक्रमणकारी महमूद गजऩवी ने अपने भारत पर किए गए सत्रह आक्रमणों में से एक आक्रमण खेतड़ी पर भी किया था, मगर उसके उपरान्त भी खेतड़ी की शान में कोई कमी नहीं आयी थी। 
खेतड़ी नरेश राजा अजीतसिंह एक धार्मिक व आध्यात्मिक प्रवृत्ति वाले शासक थे। राजा अजीतसिंह ने माऊन्ट आबू में एक नया महल खरीदा था जिसे उन्होंने खेतड़ी महल नाम दिया था। गर्मी में राजा उसी महल में ठहरे हुये थे उसी दौरान 4 जून 1891 को उनकी युवा संन्यासी विवेकानन्द से पहली बार मुलाकात हुई। इस मुलाकात से अजीतसिंह उस युवा संन्यासी से इतने प्रभावित हुए कि राजा ने उस युवा संन्यासी को अपना गुरु बना लिया तथा अपने साथ खेतड़ी चलने का आग्रह किया जिसे स्वामीजी ठुकरा नहीं सके। इस प्रकार स्वामी विवेकानन्द 7 अगस्त 1891 को प्रथम बार खेतड़ी आये। खेतड़ी में स्वामीजी 27 अक्टूबर 1891 तक रहे। यह स्वामी विवेकानन्द जी की प्रथम खेतड़ी यात्रा थी तथा किसी एक स्थान पर स्वामीजी का सबसे बड़ा ठहराव था।
 
खेतड़ी प्रवास के दौरान स्वामीजी नित्यप्रति राजा अजीतसिंह जी से आध्यात्मिकता पर चर्चा करते थे। स्वामीजी ने राजा अजीतसिंह को उदार व विशाल बनने के लिए आधुनिक विज्ञान के महत्व को समझाया। खेतड़ी में ही स्वामी विवेकानन्द ने राजपण्डित नारायणदास शास्त्री के सहयोग से पाणिनी का 'अष्टाध्यायी’ व पातंजलि का 'महाभाष्याधायी’ का अध्ययन किया। स्वामीजी ने व्याकरणाचार्य और पाण्डित्य के लिए विख्यात नारायणदास शास्त्री को लिखे पत्रों में उन्हें मेरे गुरु कहकर सम्बोधित किया था।

 
अमेरिका जाने से पूर्व राजा अजीतसिंह के निमंत्रण पर 21 अप्रैल, 1893 को स्वामीजी दूसरी बार खेतड़ी पहुंचे। स्वामी जी ने इस दौरान 10 मई 1893 तक खेतड़ी में प्रवास किया। यह स्वामी जी की दूसरी खेतड़ी यात्रा थी। इसी दौरान एक दिन नरेश अजीत सिंह व स्वामीजी फतेहविलास महल में बैठे शास्त्र चर्चा कर रहे थे। तभी राज्य की नर्तकियों ने वहां आकर गायन वादन का अनुरोध किया। इस पर संन्यासी होने के नाते स्वामीजी उसमें भाग नहीं लेना चाहते थे, वे उठकर जाने लगे तो नर्तकियों के दल की नायिका मैनाबाई ने स्वामी जी से आग्रह किया कि स्वामीजी आप भी विराजें, मैं यहां भजन सुनाउंगी इस पर स्वामीजी बैठ गये। नर्तकी मैनाबाई ने महाकवि सूरदास रचित प्रसिद्ध भजन 
 
प्रभू मोरे अवगुण चित न धरो ।


समदरसी है नाम तिहारो चाहे तो पार करो ॥


एक लोहा पूजा में राखत एक घर बधिक परो ।

पारस गुण अवगुण नहिं चितवत कंचन करत खरो ॥
 
सुनाया तो स्वामीजी की आंखों में पश्चाताप मिश्रित आंसुओं की धारा बह निकली और उन्होंने उस पतिता नारी को 'ज्ञानदायिनी मां’ कहकर सम्बोधित किया तथा कहा कि आपने आज मेरी आंखें खोल दी हैं। इस भजन को सुनकर ही स्वामीजी संन्यासोन्मुखी हुए ओर जीवन पर्यन्त सद्भााव से जुड़े रहने का व्रत धारण किया। 10 मई 1893 को स्वामीजी ने मात्र 28 वर्ष की अल्पायु में खेतड़ी से अमेरिका जाने को प्रस्थान किया। महाराजा अजीतसिंह के आर्थिक सहयोग से ही स्वामी विवेकानन्द अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित विश्वधर्म सम्मेलन में शामिल हुए और वेदान्त की पताका फहराकर भारत को विश्व धर्मगुरु का सम्मान दिलाया। अमेरिका जाते वक्त खेतड़ी नरेश राजा अजीतसिंह ने अपने मुंशी जगमोहन लाल व अन्य सहायक कर्मचारियों को बम्बई तक स्वामी जी की यात्रा की तैयारियों व व्यवस्था करने के लिये स्वामी जी के साथ भेजा। स्वामी जी ने जहाज का साधारण दर्जे का टिकट खरीदा था जिसे राजा ने वापस करवाकर उच्च दर्जे का टिकट दिलवाया। अमेरिका में स्वामी जी का धन खो गया। इस बात का पता जब अजीतसिंह जी को लगा तो उन्होंने टेलीग्राफ से वहीं तत्काल 150 डालर भिजवाये। 
 
इस बात का पता बहुत कम लोगों को है कि स्वामीजी का सर्वजन विदित 'स्वामी विवेकानन्द’ नाम भी राजा अजीतसिंह ने रखा था। इससे पूर्व स्वामीजी का अपना नाम विविदिषानन्द था। शिकागो जाने से पूर्व राजा अजीतसिंह ने स्वामीजी से कहा कि आपका नाम बड़ा कठिन है तथा टीकाकार की सहायता के बिना उसका अर्थ नहीं समझा जा सकता है तथा नाम का उच्चारण भी सही नहीं है। और अब तो विविदिषाकाल यानि जानने की इच्छा भी समाप्त हो चुकी है। उसी दिन राजा अजीतसिंह ने उनके सिर पर साफा बांधा व भगवा चोगा पहना कर नया वेश व नया नाम स्वामी विवेकानन्द प्रदान किया जिसे स्वामीजी ने जीवन पर्यन्त धारण किया। आज भी लोक उन्हें राजा अजीतसिंह द्वारा प्रदत्त स्वामी विवेकानन्द नाम से ही जानते हैं। 
 
शिकागो में हिन्दू धर्म की पताका फहराकर स्वामीजी विश्व भ्रमण करते हुए 1897 में जब भारत लौटे तो 17 दिसम्बर 1897 को खेतड़ी नरेश ने स्वामीजी के सम्मान में 12 मील दूर जाकर उनका स्वागत किया व भव्य गाजे-बाजे के साथ खेतड़ी लेकर आये। उस वक्त स्वामी जी को सम्मान स्वरूप खेतड़ी दरबार के सभी ओहदेदारों ने दो-दो सिक्के भेंट किये व खेतड़ी नरेश ने तीन हजार सिेक्के भेंट कर दरबार हाल में स्वामी जी का स्वागत किया।
 
सर्वधर्म सम्मेलन से लौटने के बाद स्वामी विवेकानंद जब खेतड़ी आए तो राजा अजीतसिंह ने उनके स्वागत में चालीस मण (सोलह सौ किलो) देशी घी के दीपक पूरे खेतड़ी शहर में जलवाए थे। इससे भोपालगढ़, फतेहसिंह महल, जयनिवास महल के साथ पूरा शहर जगमगा उठा था। 20 दिसम्बर 1897 को खेतड़ी के पन्नालाल शाह तालाब पर प्रीतिभोज देकर स्वामी जी का भव्य स्वागत किया। शाही भोज में उस वक्त खेतड़ी ठिकाना के पांच हजार लोगों ने भाग लिया था। उसी समारोह में स्वामी विवेकानन्द जी ने खेतड़ी में सार्वजनिक रूप से भाषण दिया जिसे सुनने हजारों की संख्या में लोग उमड़ पड़े। उस भाषण को सुनने वालों में खेतड़ी नरेश अजीतसिंह के साथ काफी संख्या में विदेशी राजनयिक भी शामिल हुये। 21 दिसम्बर 1897 को स्वामीजी खेतड़ी से प्रस्थान कर गये, यह स्वामीजी का अन्तिम खेतड़ी प्रवास था।
 
स्वामी विवेकानन्द जी ने एक स्थान पर स्वयं स्वीकार किया था कि यदि खेतड़ी के राजा अजीतसिंह जी से उनकी भेंट नही हुयी होती तो भारत की उन्नति के लिये उनके द्वारा जो थोड़ा बहुत प्रयास किया गया, उसे वे कभी नहीं कर पाते। स्वामी जी राजा अजीतसिंह को समय-समय पर पत्र लिखकर जनहित कार्य जारी रखने की प्रेरण देते रहते थे। स्वामी विवेकानन्द जी ने जहां राजा अजीतसिंह को खगोल विज्ञान की शिक्षा दी थी वहीं उन्होंने खेतड़ी के संस्कृत विद्यालय में अष्ठाध्यायी ग्रंथों का अध्ययन भी किया था। स्वामी विवेकानन्द जी के कहने पर ही राजा अजीतसिंह ने खेतड़ी में शिक्षा के प्रसार के लिये जयसिंह स्कूल की स्थापना की थी।
 
कहते हैं कि स्वामीजी के आशीर्वचन से ही राजा अजीतसिंह को पुत्र प्राप्ति हुई थी। राजा अजीतसिंह और स्वामी विवेकानन्द के अटूट सम्बन्धों की अनेक कथाएं आज भी खेतड़ी के लोगों की जुबान पर सहज ही सुनने को मिल जाती हैं। स्वामीजी का मानना था कि यदि राजा अजीतसिंह नहीं मिलते तो उनका शिकागो जाना संभव नहीं होता। स्वामी जी ने माना था कि राजा अजीतसिंह ही उनके जीवन में एकमात्र मित्र थे। स्वामी जी के आग्रह पर राजा अजीतसिंह ने स्वामी की माता भुवनेश्वरी देवी को 1891 से सहयोग के लिये 100 रूपये प्रतिमाह भिजवाना प्रारम्भ करवाया था जो अजीतसिंह जी की मृत्यु तक जारी रहा।
 
स्वामी जी का जन्म 12 जनवरी 1863 में व मृत्यु 4 जुलाई 1902 को हुयी थी। इसी तरह राजा अजीतसिंह जी का जन्म 10 अक्टूबर 1861 में व मृत्यु 18 जनवरी 1901 को हुयी थी। दोनों का निधन 39 वर्ष की उम्र में हो गया था व दोनों के जन्म व मृत्यु के समय में भी ज्यादा अन्तर नहीं था। इसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता है। 
 
स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण मिशन नामक सेवा भावी संगठन की स्थापना की, जिसकी राजस्थान में सर्वप्रथम शाखा खेतड़ी में 1958 को राजा अजीतसिंह के पौत्र बहादुर सरदार सिंह द्वारा खेतड़ी प्रवास के दौरान स्वामी जी के ठहरने के स्थान स्वामी विवेकानन्द स्मृति भवन में प्रारम्भ करवायी गयी। मिशन द्वारा खेतड़ी में गरीब तथा पिछड़े बालक-बालिकाओं के लिए श्री शारदा शिशु विहार नाम से एक बालवाड़ी, सार्वजनिक पुस्तकालय, वाचनालय एवं एक मातृ सदन तथा शिशु कल्याण केन्द्र भी चलाया जा रहा है। खेतड़ी चौराहे पर तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. भैरोंसिंह शेखावत ने 1996 में स्वामी विवेकानन्दजी की आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया था। जिससे आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिलती रहेगी। 2013 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी ने अपनी खेतड़ी यात्रा के दौरान वहां के रामकृष्ण मिशन में जाकर स्वामी जी को श्रद्धांजलि अर्पित की थी।
 

Saturday, 18 May 2019

सीकर का इतिहास

सीकर जिला


सीकर ज़िला
Rajastan Sikar district.png

राजस्थान में सीकर ज़िले की अवस्थिति
74.44°N 75.25°E - 27.21°N 28.12°E
राज्यराजस्थानFlag of India.svg भारत
प्रशासनिक प्रभागजयपुर प्रभाग
मुख्यालयसीकर
क्षेत्रफल7,742.44 कि॰मी2 (2,989.37 वर्ग मील)
जनसंख्या
26,77,737सन्दर्भ त्रुटि: अमान्य <ref>टैग;
(संभवतः कई) अमान्य नाम (2011)
जनसंख्या घनत्व346/किमी2 (900/मील2)
शहरी जनसंख्या633,300
साक्षरता72.98
लिंगानुपात944
तहसीलें1. सीकर, 2. फतेहपुर शेखावाटी, 3. लक्ष्मणगढ़, 4. दांतारामगढ़, 5. श्रीमाधोपुर, 6. नीम का थाना 7.(खण्डेला) 8.(धोद) 9.(रामगढ शेखावाटी)
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रसीकर[1]
विधानसभा में सीटें1. सीकर, 2. फतेहपुर शेखावाटी, 3. लक्ष्मणगढ़, 4. दांतारामगढ़, 5. श्रीमाधोपुर, 6. नीम का थाना, 7. खंडेला, 8. धोद[2]
प्रमुख सड़केंराष्ट्रीय राजमार्ग 11 (NH-11), राज्य राजपथ 8 (SH-8)
औसत वार्षिक वर्षण459.8 मिमी
आधिकारिक जालस्थल
सीकर जिला भारत के राजस्थान प्रान्त का एक जिला है। यह जिला शेखावाटी के नाम से जाना जाता है, यह प्राकृतिक दृष्टि महत्वपूर्ण से महत्वपूर्ण हैŀ यहां पर तरह- तरह के प्राकृतिक रंग देखने को मिलते हैं सीकर जिले को "वीरभान" ने बसाया ओर "वीरभान का बास" सीकर का पुराना नाम दिया। राजा माधोसिंह जी ने वर्तमान स्वरूप प्रदान किया ओर सीकर नाम दिया। इन्होंने छल करके "कासली" गांव के राजा से गणेश जी की मूर्ति जीती, ये मूर्ति कासली के राजा को एक़ सन्त द्वारा भेंट की गई थी, इस मूर्ति की प्राप्ति के बाद कासली गांव "अविजय" था, कई बार सीकर के राजा ने कासली को जीतने का प्रयास किया लेकिन असफल रहा, बाद में गुप्तचरों के जरिये जब इसके बारे में सूचना हासिल हुई तो आपने एक विश्वसनीय सैनिक को साधु का भेष धराकर कासली भेजा और छल से ये मूर्ति हासिल की तथा आगली सुबह कासली पर आक्रमण कर विजय हासिल की। छल से मूर्ति प्राप्त करने और विजय हासिल करने के बाद सीकर राजा ने महल के सामने गणेश जी का मंदिर भी बनवाया जो की आज भी सुभाष चोक में स्थित है। राजा ने गोपीनाथ जी का मंदिर भी बनवाया था। सीकर की रामलीला बहुत ही प्रसिद्ध है। पूरे शेखावाटी में इस रामलीला मंचन को भी राजा ने शुरू करवाया था। और अब इसे सांस्कृतिक मंडल नामक संस्था चलाती है।

सीकर जिला का परिचय

सीकर जिला राजस्थान के उत्तर-पूर्वी भाग में 27 डिग्री 21’ और 28 डिग्री 12’ उत्तरी अक्षांश तथा 74 डिग्री 44’ से 75 डिग्री 25’ पूर्वी देशान्तर के मध्य फैला हुआ है। इसके उत्तर में झुन्झुनूं, उत्तर-पश्चिम में चूरू, दक्षिण-पश्चिम में नागौर और दक्षिण-पूर्व में जयपुर जिले की सीमायें लगती हैं।

आदर्श स्थल

सीकर रा इतिहास (History of Sikar)


सीकर भारत में राजस्थान राज्य के शेखावाटी क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक शहर है। यह अपनी कलासंस्कृति और पधारो म्हारे देश रवैये केलिए मशहूर है। यह सीकर जिले के प्रशासनिक मुख्यालय है।
यह प्राकृतिक दृष्टि महत्वपूर्ण से मह्त्वपुण्र हैŀ यहां पर तरहतरह के प्राकृतिक रंग देखने को मिलते हैं।
रियासती युग में सीकर ठिकानाजयपुर रियासत का ही एक हिस्सा था। सीकर की स्थापना 1687 के आस पास राव दौलत सिंह ने की जहाँआज सीकर शहर का गढ़ बना हुआ है। वह उस जमाने में वीरभान का बास नामक गाँव होता था।
यह इससे पहले यह नेहरावाटी के रूप में जाना जाता था जयपुर राज्य का सबसे बड़ा ठिकाना (एस्टेटथा। सीकर ठिकाना सीकर कीराजधानी शहर था। यह सात "परास्नातक" (गेट्ससे मिलकर ऊंची दीवारों से घिरा हुआ है। ये सात फाटकों बावड़ी गेटफतेहपुरी गेटनानीगेटसूरजपोल गेटदुजोड़ गेट ओल्डदुजोड़ गेट नई और चांदपोल गेट हैं। यह सात फाटकों के शामिल ऊँची दीवारों द्वारा सभी चारों ओर लेजाता है। दौलत सिंह के पिता जसवंत सिंह की हत्या के कारण शत्रुता को कम करने के क्रम में, बहादुर सिंह खंडेला के राजा दौलत सिंह कोगांव उपहार में दिया। बाद में उनके बेटे शिव सिंह पर उस पर एक भव्य किला बनाया बहुत मजबूत, चतुर, साहसी और बोल्ड था। शिव सिंहसीकर के सबसे प्रमुख राव राजा था। उन्होंने कहा कि एक सुंदर शहर में गांव का विकास किया। यह एक मजबूत चारदीवारी से घिरा हुआ है।उन्होंने कहा कि एक धार्मिक व्यक्ति थे।
राव जसवंत सिंहकासली ठिकाना की राव दौलत सिंह के पिता की हत्या के बाद, शत्रुता राव दौलत सिंह और खंडेला के राजा थाजो राजाबहादुर सिंह शेखावत के बीच पैदा हुई। इस दुश्मनी खत्म करने के लिएराजा बहादुर सिंह शेखावत ने राव दौलत सिंह को इस गांव कोउपहार में दिया। बाद में1687 मेंराव दौलत सिंह ने इस गांव में नया ठिकाना सीकर की नींव रखी। समय बीत के रूप मेंगंतव्य कई रावराजाओं का शासन था। 1721 से 1748 तक सीकर क्षेत्र की सबसे प्रमुख राजा थाजो राव शिव सिंह के नियंत्रण में था। सीकरशिव सिंह अर्थात्उसके वारिस के बाद राव समरथ सिंहराव नाहर सिंहराव चंद सिंह और राव देवी सिंह का शासन था।
सेखा के बेटे रायमल और उनके बेटे रायसल गुजरात पर हमले के अपने अभियान में अकबर का समर्थन किया था। गुजरात पर अकबर केदूसरे हमले के दौरानरायसल के बेटे त्रिमल उसकी बहादुरी से अकबर प्रभावित है और अकबर 'रावकी उपाधि से सम्मानित किया। त्रिमलके बेटे गंगाराम अपनी राजधानी के रूप में कासली बनाया है। गंगाराम के बेटे स्यामाराम और उनके बेटे जसवंत सिंह को अपनी राजधानी केरूप में दुजोड़ बनाया है। उन्होंने जसवंत सिंह की मौत हो गईइसलिए खंडेला के शासक जसवंत सिंह के साथ दुश्मनी नहीं थी। बाद मेंखंडेला शासक जसवंत सिंह के पुत्र दौलत सिंह को वीरभान का बास की जागीर दे दी मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए है। दौलत सिंह राव सेखा कीस्मृति में सीकर के लिए इस गांव का नाम बदल दिया और दौलत सिंह के पुत्र शिव सिंह 1721 में सीकर के शासक बने। 1687 में यहां एककिले का निर्माण किया।
शिव सिंह के बाद उनके उत्तराधिकारियों राव देवी सिंह चंद सिंह के बाद सीकर के सिंहासन राव समरथ सिंहराव नाहर सिंह  राव चंद सिंहथे। वह एक महान योद्धा था और बहुत ही कुशलता से सीकर पर शासन किया। रघुनाथगढ़ और देवगढ़ के किलों उसके द्वारा बनाया गया हैऔर यह भी रामगढ़ शेखावाटी की स्थापना की थी। यह सीकर शेखावाटी में एक मजबूत शक्ति बन गया है कि देवी सिंह के दौरान शासनकालकिया गया था। शानदार रघुनाथ जी के मंदिर और हनुमान जी वह देवी देवताओं के एक महान पूजा करते थे कि गवाह हैं। उन्होंने कहा किउनकी अवधि सीकर का सुनहरा नियम कहा जाता है कि इतना लोकप्रिय था। उन्होंने कहा कि 1795 देवी सिंह के पुत्र राव राजा लक्ष्मण सिंहजी भी एक महान योद्धा था साल में निधन हो गया। उन्होंने कहा कि लक्ष्मणगढ़ किला पहाड़ी और अपने नाम के बाद बुलाया लक्ष्मणगढ़ मेंपहाड़ियों के पैर पर उभर आए जो एक शहर पर खड़ा बनाया। महाराजा सवाई जगत सिंह जी साहेब बहादुर (द्वितीय)जयपुर के राजा 'रावराजाकी उपाधि राजा द्वारा उस पर सम्मानित किया गया एक परिणाम के रूप मेंइस अवधि के कला के प्यार के लिए जाना जाता है सीखनेउसके साथ बहुत खुश थाधर्म और संस्कृति उन्होंने सीकर राज्य उसकी अवधि में बहुत समृद्ध थाबहुत परोपकारी था। सेठ के और अमीरलोगों को भव्य भवनों का निर्माण किया गया और उन पर पेंटिंग देखने लायक हैं।
लक्ष्मण सिंह इसकी दीवारों पर व्याप्ति सुनहरा पेंटिंग बना संगमरमर का महल बहुत ही आकर्षक है मिल गया के बाद सिंहासन राव राजा रामप्रताप सिंह। इस तरह के राव राजा भैरों सिंहराव राजा सर माधव सिंह बहादुर के रूप में सीकर के लगातार शासकों (1866/1922)वह 1886 में बहादुर का खिताब दिया गया था और माधव सिंह भारी विक्टोरिया हीरे जुबली हॉल और माधव निवास कोठी बनाने का श्रेय प्राप्त हैवास्तुकला और चित्रों के लिए अपने प्यार का उत्कृष्ट उदाहरण हैजो कर रहे हैं। वह हमेशा जनता के कल्याण के लिए उत्सुक था। 1899 (संवत 1956) में भयानक अकाल के दौरान उन्होंने गरीब और भूखे लोगों के लिए कई अकाल राहत कार्यों शुरू कर दिया। यह इस तालाब56000/ रूपये की लागत से बनाया गया था1899 में बनाया गया थाजो 'माधव सागर तालाबसे स्पष्ट है - यह स्पष्ट रूप से अपने शासक कीप्रसिद्धि बोलती है। सीकर बिजली की पहली रोशनी देखा कि यह माधव सिंह के समय में किया गया था। सड़कें भी अपने समय में निर्माणकिया गया। पुराने स्मारकोंकिलोंमहलोंचारदीवारी और मंदिरों अपने समय में मरम्मत कर रहे थे। वह बहुत मजबूत और साहसी था।उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सरकार के साथ काफी सौहार्दपूर्ण संबंध थे। सीकर जयपुर से रेलवे के सर्वेक्षण उसकी अवधि में पूरा किया गया।माधव सिंह के बाद सीकर की गद्दी कल्याण सिंह से चढ़ा था।
राव राजा कल्याण सिंह सीकर (1922/1967) के अंतिम शासक था। कल्याण सिंह उदार भवनमहलोंमंदिरों और वह 32 साल के लिए सीकरपर शासन किया था तालाबों के अपने प्यार के लिए प्रसिद्ध हो गया था। उन्होंने कहा कि शहर को सुंदरता कहते हैंजो घड़ी टॉवर का निर्माणकिया। जनता के कल्याण के लिए उन्होंने कल्याण अस्पताल और कल्याण कॉलेज का निर्माण हो गया। उन्होंने कहा कि 1967 में मृत्यु हो गई।
रतन लाल मिश्रा गांव में कुराधन सीकर जिले में कुषाण काल ​​के कुछ सिक्के यहां कुषाण शासन का संकेत प्राप्त किया गया है कि उल्लेख है।कुछ सिक्के आदिवराह और 9-10th सदी के वृषभा दिखा सीकरगनेरी और लादूसर से प्राप्त किया गया है। वृषभा असर सिक्के एक तरफवृषभा और दूसरी तरफ एक अश्वारोही दिखा। अल्लाउद्दीन-खिलजी और इब्राहिम लोदी के सिक्के क्रमशः हर्ष और कटराथल से प्राप्त कियागया है।
क्षेत्र के प्रशासनिक मुख्यालय जयपुर के बाद राज्य में दूसरा सबसे विकसित शहर हैजो सीकर शहर है। ऐतिहासिक साक्ष्यों सीकर जयपुर केराज्य का सबसे बड़ा ठिकाना था और शेखावत के शासनकाल के तहत किया गया था कि इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं। सीकर शाहीशेखावत राजाओं का राज्य था। आज भी कई शाही शेखावत परिवार सीकर में रहते हैं। महान शेखावत में से एक श्री भैरों सिंह शेखावतभारतके पूर्व उपराष्ट्रपति भी (खाचरियावाससीकर के अंतर्गत आता है। देश के तीन सबसे प्रमुख व्यापार घरों। बजाज परिवार कीबिरला औरगोयनका भी जिले के हैं।
सीकर जिले के प्रशासन यहां प्रशासन के सिर है जो जिला कलेक्टर द्वारा किया जाता है। प्रशासन में सुविधा के प्रयोजनों के लिए जिले में छहउप संभाग, एक उप प्रभागीय अधिकारी की अध्यक्षता में प्रत्येक में विभाजित है। इसे आगे भी उप तहसील, उप तहसील और पटवार मंडलों मेंबांटा गया है। ग्रामीण जिला स्तर पर प्रशासन की सुविधा के लिए आदेश मेंपंचायती राज व्यवस्था यहां जगह में डाल दिया गया है। तदनुसार,जिला परिषद विकासात्मक योजनाओं और उसी के लिए प्रशासन के अन्य पहलुओं का ख्याल रखता है।
सीकर जिले के जाटों भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने यह भी 'सीकर जाट-किसान-पंचायतके माध्यम सेराज्य में जागीरदारी प्रणाली समाप्त करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
1857 की क्रांति के समय अंग्रेज़ी राज के विरूद्ध जन चेतना जागृति करने वाले डूँगजी-जवाहर जी सीकर के बठोठ-पाटोदा के रहने वाले थे।लोठिया जाट  करणा भील डूँगजी जवाहर जी के साथी थे। इसी क्षेत्र में तांत्या टोपे ने 1857 की क्रांति के समय शरण प्राप्त की थी।गाँधी जी के5वें पुत्र के नाम से प्रसिद्ध सेठ जमनालाल बजाज (काशी का बासइसी ज़िले के रहने वाले थे। राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा पाटिल का ससुरालसीकर जिले में है। यहीं जिला राज्य के प्रथम गैर काँग्रेसी मुख्यमंत्री श्री भैंरोसिंह शेखावत का गृह जिला है।

सामान्य सूचनाएं
जणगणना वर्ष-2011 के आँकड़ों के अनुसार सीकर क्षेत्र की जनसँख्या 2677737 लाख जिसमे पुरुष 1377120 लाख और महिला 1300617 लाख 7732 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले हुए हैं।
7732.44 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैलासीकर राजस्थान के राज्य में एक जिला है। राज्य के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित हैयह चुरू जिलेसे और नागौर जिले के दक्षिण-पश्चिम में उत्तर-पश्चिम मेंउत्तर में झुंझुनू जिले से घिरा है। हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिलाउत्तर-पूर्वी कोने पर हैजबकि दक्षिण-पूर्व मेंगंतव्यजयपुर जिला से घिरा हुआ है।
सीकर किलोमीटर दूर जयपुर से है राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 11 पर बीकानेर और आगरा के बीच रास्ते के मध्य में स्थित 320 किमी जोधपुर 215 किमी से बीकानेर से और दिल्ली से 280 किमी दूर है।

सीकर जिले के तहसील  कितने गाँव
दांता राम गढ़ (२४६) (246)
फतेहपुर (१२९) (129)
लक्ष्मणगढ़ (१७१) (171)
नीमकाथाना (१९४) (194)
सीकर (२०४) (204)
श्रीमाधोपुर (२४०) (240)

वीरभान का बास ऐसे बना आज का सीकर

सीकर. 327 सालों में विकास की रफ्तार का पहिया बिना रुके लगातार चल रहा है। शहर ने विकास की दौड़ के बीच अपना रंग और स्वरूप जरूर बदला लेकिन संस्कृति व परंपरा का साथ कभी नहीं छोड़ा। विक्रम संवत 1744 में राव दौलतसिंह ने सीकर शहर की स्थापना की थी। उस दौरान सुभाष चौक में छोटा गढ़ बनाया गया था। इतिहास के जानकार महावीर पुरोहित बताते हैं, वीरभान का बास गांव पर सीकर शहर को बसाया गया था। 1954 तक शहर पर 11 राजाओं ने राज किया। अंतिम राजा रावराजा कल्याणसिंह थे। इन्होंने 34 साल राज किया। 15 जून 1954 को राव राजा कल्याणसिंह ने शासन की बागडोर राज्य सरकार को सौंप दी। सीकर को वीरभान का बास के बाद श्रीकर के नाम से जाना जाता रहा। इसे शिखर भी कहा जाता था, क्योंकि गढ़ पर बसाया गया था। जैन मंदिर में रखे शिलालेख में सीकर का नाम शिवकर बताया गया है। क्योंकि दौलतसिंह के बाद राजा बने शिवसिंह ने चारदीवारी व नहर बनवाई थी। सीकर के स्थापना दिवस पर विशेष रिपोर्ट।



शहर के बीचों बीच स्थित घंटाघर 1967 में युवराज हरदयाल की स्मृति में राव रानी स्वरूप कंवर((जोधीजी)) ने बनाया था। 85 फीट के घंटाघर की नींव ही 30 फीट भरी हुई है। घड़ी में जितने बजते थे उतने ही घंटे लगते थे, जो कि पूरे शहर में सुनाई देते थे लेकिन आज दस साल के करीब हो गए। घंटाघर की घड़ी खराब पड़ी है।

६ बुनियादी बदलावों से समझिए ३२७ सालों में हमने कितना कुछ पाया 

:आमदनी : शुरुआत के वक्त सीकर राज्य हुआ करता था। इसकी सालाना आमदनी 20 लाख रुपए थी। आज सीकर शहर में हर साल करीब 100 से 150 करोड़ रुपए विभिन्न कार्यों पर खर्च होते हैं। जिले की सालाना आमदनी करीब एक अरब है।

:साक्षरता : साक्षरता दर औसत 17 से बढ़कर 85 फीसदी पहुंच गई है। 1960 से 1980 के बीच कई स्कूल व कॉलेज संचालित हुए। अब शहर में पांच बड़े कोचिंग संस्थान, 10 बड़े स्कूल संचालित हैं। जहां अन्य जिलों से भी विद्यार्थी अपने अरमान पूरे करने आ रहे हैं।

:मेडिकल : मेडिकल में सुविधाएं बढ़ रही हैं। अब कैथलैब, एंजियोग्राफी, पेसमैकर, माइनर हार्ट ऑपरेशन, डायलिसिस, एमआरआई, सिटीस्केन सहित कई सुविधाएं मौजूद हैं। इसके अलावा नर्सिंग की कई कॉलेज खुल चुकी हैं। मेडिकल कॉलेज की मांग जारी है।

:मोबाइल : सीकर स्टेट में करीब तीस फोन हुआ करते थे। फिलहाल शहर में 80 हजार लोगों के पास मोबाइल हैं। उस वक्त दस रेडियो थे, आज 80 फीसदी घरों में टेलीविजन हैं। हर घर में लोगों के पास कम्यूटर उपलब्ध हैं। 

:वाहन : सीकर में रावराजा कल्याण सिंह सहित कुछ नामी सेठ-साहूकारों के पास ही कार व मोटरसाइकिल हुआ करती थी। 1950 तक सीकर में 45 कार व मोटरसाइकिल थी। अब शहर में करीब छह हजार से अधिक टैक्सी तथा इतने ही अन्य वाहन दौड़ते हैं।

:स्कूल-कॉलेज : रावराजा माधोसिंह ने सीकर शहर में 1922 में आठवीं कक्षा तक का स्कूल शुरू कराया था। सीकर में दसवीं तक का स्कूल 1927, 12 वीं तक 1940 व कॉलेज 1958 में शुरू हुआ। अब तो शहर में गल्र्स के लिए भी तीन बड़े कॉलेज हैं।

सीकर रेलवे स्टेशन का भवन 1921 में जयपुर स्टेट के महाराजा सवाई माधो सिंह ने बनवाया था। जिसपर 12 जुलाई 1922 को पहली ट्रेन जयपुर से पहुंची थी। पहले ओपन रेलवे स्टेशन था। हालांकि भवन गुंबद में छेद छोड़े हुए थे। जिनकी सहायता से टेंट भी लगाया जाता था। उस दौरान जयपुर से सीकर का किराया मात्र 15 आने था।

सीकर पर्यटन स्थल – सीकर का इतिहास व टॉप 6 दर्शनीय स्थल

सीकर सबसे बड़ा थिकाना राजपूत राज्य है, जिसे शेखावत राजपूतों द्वारा शासित किया गया था, जो शेखावती में से थे। 1922-67 की अवधि के दौरान अंतिम शेखावती राजा राव कल्याण सिंह था। सीकर संस्कृति, कला और धन का एक प्रमुख केंद्र था, और यह ऐतिहासिक अभिलेखों से स्पष्ट है। अंग्रेजों से आजादी के बाद, धन में काफी वृद्धि हुई। सीकर में पर्यटक महत्व के कई अनेक स्थान है, जो आज तक, सीकर समृद्ध, संस्कृती, विरासत, और आधुनिक शैक्षणिक संगठनों के साथ-साथ अच्छी आधारभूत सुविधाएं भी देते है। 18 वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान सीकर के शाही परिवार ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अंग्रेजों और जयपुर राज्य शासकों के साथ अपनी शक्तियों को संतुलित किया।
सीकर में खाटूश्यामजी मंदिर एक लोकप्रिय मंदिर है जो पूरे साल भक्तों और पर्यटकों की विशाल भीड़ से घिरा हुआ रहता है। इस मंदिर मे फरवरी और मार्च के महीनों में अपने प्रसिद्ध खाटूश्यामजी मेला के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की। यह लोकप्रिय मेला क्षेत्र की चमकदार लोक संस्कृति के साथ विभिन्न कला रूपों को चित्रित करने के लिए महत्वपूर्ण अवसर है। यदि आप सीकर की यात्रा, सीकर सीकर पर्यटन स्थल, सीकर भ्रमण, की योजना बना रहे है, तो आप सीकर मे हर्षनाथ, माधो निवास कोठी, रामगढ़, गणेश्वर और जयंमाता जा सकते हैं। इस ऐतिहासिक स्थान सीकर में प्राचीन हवेली शामिल हैं जो बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। हवेली और लक्ष्मणगढ़ किले के अलावा, सीकर में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जैसे हर्षनाथ मंदिर, खाटूश्यामजी मंदिर इत्यादि। जिनके बारें मे हम नीचे विस्तार से जानेंगे। इससे पहले हम सीकर का इतिहास जान लेते है।

सीकर का इतिहास 

सीकर, ऐतिहासिक शहरों में से एक है, जो भारत के राजस्थान राज्य के शेखावती क्षेत्र में स्थित है। यह राजस्थान की शानदार कला, संस्कृती,और पडारो महर की परंपरा का पालन करता है। यह सीकर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। सीकर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 11 पर बीकानेर और आगरा के बीच मिडवे स्थित है। यह जयपुर से 114 किमी दूर है, जोधपुर (320 किमी दूर), बीकानेर (215 किमी दूर) और दिल्ली (280 किमी दूर) है।
सीकर जयपुर राज्य का सबसे बड़ा थिकाना (एस्टेट) था। पहले सीकर को नेहराती के नाम से जाना जाता था। यह थिकाना सीकर का राजधानी शहर था। सीकर सात दीवारों (द्वार) से युक्त गढ़ी हुई दीवारों से घिरा हुआ है। इन ऐतिहासिक द्वारों का नाम बावरी गेट, फतेहपुरी गेट, नानी गेट, सूरजपोल गेट, दुजोड गेट ओल्ड, दुजोड गेट न्यू और चन्द्रोल गेट के नाम से रखा गया है। सीकर का प्राचीन नाम “बीयर भानका बास” था।
खांडेला के राजा बहादुर सिंह शेखावत ने रास दौलत सिंह को “बीयर भानका बास” उपहार मे दिया था। जो कासली थिकाना के राव जसवंत सिंह के पुत्र थे। 1687 में, राव दौलत सिंह जी ने बीयर भानका बास में नए थिकाना सीकर की पहली नींव रखी और यहां ऐतिहासिक किले का निर्माण किया। बाद में उनके बेटे राव शिव सिंह (1721/1748) जो अपनी मजबूत, साहसी, चतुर और बोल्ड विशेषताओं के लिए जाने जाते थे, हाथों में काम ले लिया और किले और अन्य महलों को पूरा किया। शिव सिंह, उनके करिश्माई व्यक्तित्व के कारण, सीकर के सबसे प्रमुख राव राजा थे। उन्होंने पूरे गांव को मजबूत “पार्कोटा” परिवेश के साथ सुंदर बनाया। वह एक धार्मिक व्यक्ति था जो उसके द्वारा निर्मित “गोपीनाथजी” के प्रसिद्ध मंदिर में दिखाया गया था। वह एक महान राज्य निर्माता, शक्तिशाली योद्धा, और कला, चित्रकला और वास्तुकला का एक महान प्रशंसक था।
शिव सिंह के उत्तराधिकारी राजा राव समरथ सिंह, राव नहर सिंह और राव चंद सिंह थे। चंद सिंह के बाद राव देवी सिंह सीकर के सिंहासन पर चढ़ गए। वहां फिर से एक महान योद्धा और शासक था। उन्होंने सीकर पर बहुत कुशलतापूर्वक शासन किया। उन्होंने सिकार को अपने सत्तारूढ़ कौशल से शेखावती में सबसे मजबूत संपत्ति के रूप में सृमद्ध बनाया। उन्होंने रघुनाथगढ़ और देवगढ़ के किलों का निर्माण किया और रामगढ़ शेखावती की भी स्थापना की। रघुनाथजी और हनुमानजी का शानदार मंदिर उनकी धार्मिक झुकाव की कहानी बताता है। वह इतना लोकप्रिय था कि उसकी अवधि को सीकर की सुनहरा सत्तारूढ़ अवधि कहा जाता है। 1795 में उनकी मृत्यु हो गई। देवी सिंह के बेटे राव राजा लक्ष्मण सिंह जी भी महान सम्राट थे। उन्होंने चट्टानों के बिखरे हुए टुकड़ों पर “लक्ष्मणगढ़ किला” बनाया जो वास्तुकला का एक अनूठा काम है। महाराजा सवाई जगत सिंह जी साहेबबाहदुर (द्वितीय), जयपुर का राजा उससे बहुत खुश था, जिसके परिणामस्वरूप राजा द्वारा ‘राव राजा’ का शीर्षक से उन्हें सम्मानित किया गया था। उनकी अवधि कला, संस्कृति, धर्म और शिक्षा के प्रति प्यार के लिए मुख्य रूप से जानी जाती थी। वह बहुत परोपकारी था, सीकर राज्य अपनी अवधि में बहुत समृद्ध था। सेठ और समृद्ध लोगों ने शानदार इमारतों का निर्माण किया और उन पर पेंटिंग्स अभी भी देखने लायक हैं।
लक्ष्मण सिंह ने एक संगमरमर महल का निर्माण करने के बाद राव राजा राम प्रताप सिंह सिंहासन पर बैठ गए। इसकी दीवारों पर सुनहरी पेंटिंग अभी भी बहुत आकर्षक हैं। राव राजा भैरों सिंह, राव राजा सर माधव सिंह बहादुर (1866/1922) जैसे सीकर के लगातार शासक, जिन्हें 1886 में बहादुर के उपाधि के साथ दिया गया था। राव राजा माधव सिंह ने विशाल विक्टोरिया हीरे जयंती हॉल और माधव निवास कोठी का निर्माण किया जो कि वास्तुकला और चित्रों के प्रति उनके प्यार के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। वह हमेशा सार्वजनिक कल्याण के लिए चिंतित थे। 1899 (समवत 1956) में अकाल संकट के दौरान, उन्होंने गरीब और भूखे लोगों के लिए कई अकाल राहत कार्य शुरू किए। यह ‘माधव सागर तालाब’ से स्पष्ट है, जिसे 1899 में बनाया गया था। यह तालाब 56000 रुपये की लागत से बनाया गया था। जो स्पष्ट रूप से अपने शासक की उदारता को बताता है। यह माधव सिंह के समय था कि सीकर ने बिजली की पहली रोशनी देखी थी। सड़कों का निर्माण भी उनके समय में किया गया था। पुराने स्मारक, किलों, महलों, सीमा दीवारों और मंदिरों को उनके समय में पुनर्निर्मित किया गया था। वह बहुत मजबूत और साहसी थे। ब्रिटिश सरकार के साथ उनका बहुत सौहार्दपूर्ण संबंध थे। जयपुर से सीकर तक रेलवे का सर्वेक्षण उनकी अवधि में पूरा हुआ था। माधव सिंह के बाद सिकर का सिंहासन कल्याण सिंह के पास चला गया था।
राव राजा कल्याण सिंह सीकर (1922/1967) के अंतिम शासक थे। कल्याण सिंह उदार, इमारत, महलों, मंदिरों और तालाबों के अपने प्यार के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने 32 वर्षों तक सीकर पर शासन किया। उन्होंने घड़ी टावर बनाया, जो शहर में सुंदरता जोड़ता है। जनता के कल्याण के लिए उन्हें कल्याण अस्पताल और कल्याण कॉलेज बनाया गया। 1967 में उनकी मृत्यु हो गई।
सीकर पर्यटक के लिए एक बहुत ही आकर्षक और ऐतिहासिक जगह है। प्राचीन हवेली, मंदिरों और किलों पर फ्रेशको पेंटिंग्स दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करती है। सीकर शाही शेखावत राजाओं का राजवंश था। आज भी सीकर में कई शाही शेखावत परिवार रहते हैं। सबसे महान शेखावत में से एक, श्री भैरों सिंह शेखावत, भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति भी (खच्रियावा) सीकर से संबंधित हैं। देश के तीन सबसे प्रमुख व्यापारिक परिवार जैसे। बजाज, बिड़ला और गोयनका भी सीकर जिले से संबंधित हैं।

सीकर पर्यटन स्थल – सीकर के टॉप 10 टूरिस्ट प्लेस


Sikar tourism – Top 6 places visit in Sikar


सीकर के दर्शनीय स्थलों के सुंदर दृश्य
सीकर के दर्शनीय स्थलों के सुंदर दृश्य

श्री खाटूश्यामजी मंदिर (shri khatushayam)


सीकर शहर से 46 किमी की दूरी पर खाटू श्याम जी मंदिर, सीकर जिले के खाटू गांव में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।। इस मंदिर पर श्रद्धालुओं की अत्यधिक आस्था है। यहाँ प्रत्येक वर्ष होली के शुभ अवसर पर खाटू श्याम जी का मेला लगता है। इस मेले में देश-विदेश से भक्त और पर्यटक बाबा खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए आते है। सीकर के पर्यटन स्थलों मे इस मंदिर का बहुत बडा महत्व है।
इस मंदिर की उतपत्ति और मानयता के लिए एक कहानी प्रचलित है। जिसके अनुसार महाभारत काल में भीम के पौत्र एवं घटोत्कच के पुत्र “बर्बरीक” के रूप में खाटू श्याम बाबा ने अवतार लिया था। बर्बरीक बचपन से ही अत्यधिक वीर एवं बलशाली योद्धा थे। और भगवान शिव के परम भक्त थे। भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान स्वरुप तीन बाण दिए थे। इस वरदान के कारण बर्बरीक “तीन बाण धारी” कहे जाने लगे थे। महाभारत के भयावह युद्ध को देखकर बर्बरीक ने युद्ध का साक्षी बनने की इच्छा प्रकट की वह अपनी माँ से युद्ध में जाने की अनुमति ले तीनों बाण लेकर युद्ध की ओर निकल पड़े
बर्बरीक की यौद्धा शक्ति से परिचित कौरव और पांडव दोनों ही उसे अपने पक्ष मे करने का प्रयत्न करने लगे। तब श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का रूप धारण कर, दान के रूप मे बर्बरीक से उनका सिर माँगा. उनकी इस विचित्र मांग के कारण बर्बरीक ने उनसे उन्हें अपने असली रूप में आने को कहा। तब श्री कृष्ण प्रकट हुए एवं उन्होंने बर्बरीक को उस युद्ध का सबसे वीर क्षत्रिय व योद्धा बताते हुए उनसे कहा कि युद्ध में सबसे वीर व क्षत्रिय योद्धा को सर्वप्रथम बलि देना अति आवश्यक है। भागवान कृष्ण के ऐसे वचन सुनकर बर्बरीक ने अपना सिर काटकर श्री कृष्ण को दानस्वरूप दे दिया। तब भगवान् श्री कृष्ण ने उनके इस अद्भुत दान को देखकर उन्हें वरदान दिया कि उन्हें सम्पूर्ण संसार में श्री कृष्ण के नाम “श्याम” रूप में जाना जाएगा।
भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध की समाप्ति पर बर्बरीक का सिर रूपवती नदी मे विसर्जित कर दिया था। कलयुग में एक समय खाटू गांव के राजा के मन में आए स्वप्न और श्याम कुंड के समीप हुए चमत्कारों के बाद खाटू श्याम मंदिर की स्थापना की गई। शुक्ल मास के 11 वे दिन उस मंदिर में खाटू बाबा को विराजमान किया गया। 1720 ईस्वी में दीवान अभयसिंह ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।

जीणमाता मंदिर (Jeenmata temple sikar)


सिकार जिले में जीणमाता धार्मिक महत्व का एक गांव है। यह दक्षिण में सीकर शहर से 29 किमी की दूरी पर स्थित है। जीण माता (शक्ति की देवी) को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। जीण माता का मंदिर पवित्र माना जाता है, ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर एक हजार साल पुराना है। नवरात्रि के दौरान हिंदू महीने चैत्र और अश्विन में एक वर्ष में दो बार मंदिर पर रंगीन त्योहार आयोजित किया जाता है जिसमें लाखों भक्त और पर्यटक भाग लेते है। बड़ी संख्या में आगंतुकों को समायोजित करने के लिए धर्मशालाओं की यहां उचित संख्या है। इस मंदिर के नजदीक देवी के भाई हर्ष भैरव नाथ का मंदिर पास की पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है। सीकर जिले के पर्यटन स्थलों में यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है।

लक्ष्मणगढ़ (Laxmangarh)


लक्ष्मणगढ़ सीकर जिले मे स्थित प्रमुख नगर है। लक्ष्मणगढ़ से सीकर की दूरी 28 किलोमीटर है। लक्ष्मणगढ़ सीकर आकर्षण स्थलों एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो लक्ष्मणगढ़ किले के लिए जाना जाता है। किला 1862 में सीकर के राव राजा लक्ष्मण सिंह द्वारा पहाड़ी पर बनाया गया था। ऐसा माना जाता है कि लक्ष्मणगढ़ शहर की नींव राजधानी जयपुर की योजना प्रणाली पर आधारित थी। शहर में संरचना शेखावती शैली में फ्र्रेस्को पेंटिंग्स से सजाए गए हैं।
किले के अलावा शहर में कई हवेली मुख्य रूप से दर्शनीय है, जिनमे सावंत राम चोकानी हवेली, बंसिधर राठी हवेली, संगानेरिया हवेली, मिरिजामल कायला हवेली, चार चौक हवेली और केडिया हवेली। 1845 में निर्मित राधी मुलिमानोहर मंदिर, दीवार पर देवताओं की खूबसूरत मूर्तियों के लिए लोकप्रिय है।

हर्षनाथ मंदिर (Harshnath temple sikar)


10 वीं शताब्दी से संबंधित हर्षनाथ मंदिर, सीकर के पास अरवली पहाड़ियों पर स्थित है। यह पुराना शिव मंदिर (10 वीं शताब्दी) खंडहरों के लिए प्रसिद्ध एक प्राचीन साइट है। साइट पर प्राचीन शिव मंदिर के अवशेष देखे जा सकते हैं। पुराने मंदिर का वास्तुशिल्प प्रदर्शन यहां अभी भी देखा जा सकता है। 18 वीं शताब्दी में सीकर के राजा शिव सिंह द्वारा निर्मित एक अन्य शिव मंदिर, हर्षनाथ मंदिर के पास स्थित है। सीकर टूरिस्ट पैलेस मे यह स्थान अपना अलग ही ऐतिहासिक महत्व रखता है।

दरगाह हजरत ख्वाजा हाजी मुहम्मद नजमुद्दीन सुलेमानी चिश्ती अल-फारूकी


Dargah Hazrat Khwaja Haji Muhammad Najmuddeen Sulaimani Chishti Al-Farooqui


हजरत ख्वाजाह हाजी मुहम्मद नजमुद्दीन सुलेमानी चिश्ती। प्रसिद्ध हुजूर नजम सरकार राजस्थान की पवित्र भूमि (हजरत ख्वाजा गरीब नवाज और हजरत सूफी हमीदेद्दीन नागौरी की भूमि) के औलिया-ए-एकराम के बीच एक प्रसिद्ध नाम है, जो महान सिल्सीलाह-ए-चिश्ती से ताल्लुक रखते है। उनकी पवित्र दरगाह जिला सीकर में फतेहपुर शेखावती में स्थित है जो जयपुर से 165 किमी दूर है और एनएच 12 पर सीकर से 55 किमी दूर फतेहपुर मे है।
इन्होंने 13 वीं शताब्दी में देश के सभी हिस्सों में चिश्तिया सिलसिला फैलाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी। भारत में सूफीवाद के इतिहास में हुजूर नजम सरकार जैसे कुछ उदाहरण हैं, जिस तरह से उन्होंने सिल्सीलाह-ए-चिश्तीया के धर्म, सारणी और इशात की सेवा की थी। हर इनकी दरगाह पर उर्स भी लगता है। जिसमे बडी संख्या मे जियारीन भाग लेते है।
इसके अलावा फतेहपुर भित्तिचित्रों के साथ भव्य हवेली के लिए भी प्रसिद्ध है, जो शेखावती क्षेत्र की विशेषता है। यहां कई बौद्ध (जल निकायों) आकर्षण के केंद्र भी हैं।फतेहपुर का मुख्य आकर्षण हैं: कुरेशी फार्म, नाडाइन ले प्रिंस सांस्कृतिक केंद्र, द्वारकाधिेश मंदिर, जगन्नाथ सिंघानिया हवेली, सराफ हवेली,सीताराम किडिया की हवेली।

गणेश्वर धाम (Ganeshwar dham sikar)


गणेश्वर सीकर जिले के नीम का थाना तहसील में एक गांव है। गणेश्वर एक तीर्थयात्रा के साथ-साथ एक मजेदार पिकनिक स्थान है। यहाँ सल्फर युक्त गर्म पानी एक बड़ा कुंड है। जिसमे एक प्राकृतिक धारा से निकला गर्म पानी एकत्र किया जाता है। इस कुंड मे स्नान करने का बडा महत्व माना जाता है, यह माना जाता है,इसमे स्नान करने से त्वचा रोग ठीक हो जाता है। यह एक प्राचीन साइट है। गणेश्वर क्षेत्रों में खुदाई मे 4000 साल पुरानी सभ्यताओं के अवशेषों का खुलासा किया है।
इतिहासकार रतन लाल मिश्रा ने लिखा कि 1977 में गणेश्वर का उत्खनन किया गया था। तांबे की वस्तुओं के साथ लाल मिट्टी के बर्तनों को यहां पाया गया था। इनका 2500-2000 ईसा पूर्व होने का अनुमान था। वहाँ तांबे के लगभग एक हजार टुकड़े पाए गए थे। गणेश्वर राजस्थान में खेत्री तांबा बेल्ट के सीकर-झुनझुनू क्षेत्र की तांबा खानों के पास स्थित है। खुदाई में तांबे की वस्तुओं का पता चला जिसमें तीर हेड, भाले, मछली के हुक, चूड़ियों और चिसल्स शामिल हैं। इसके माइक्रोलिथ और अन्य पत्थर के औजारों के साथ, गणेश्वर संस्कृति को पूर्व-हड़प्पा अवधि के लिए निर्धारित किया जा सकता है। गणेश्वर ने मुख्य रूप से हडप्पा को तांबा वस्तुओं की आपूर्ति की थी।

देवगढ़ का किला सीकर (Devgarh fort sikar)


सीकर से 13 किलोमीटर की दूरी पर देवगढ़ किला एक ऐतिहासिक किला है। हालांकि रखरखाव के अभाव मे अब यह एक खंडहर बन चुका है। जिसमे भारी मात्रा मे घास और झाडियां उगी हुई है। पहाड की चोटी पर स्थित यह किला पर्यटकों को आकर्षित नही करता है। यदि आप इतिहास मे रूचि रखते है तो आप यहां की यात्रा कर सकते है। अभी भी इस किले के काफी हिस्से सही हालत मे है। जिसमे आपको पुराने समय की एक अच्छी कारीगरी देखने को मिल सकती है।
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