राजपुताना
राजपूताना का अर्थ होता है की राजपूतो की धरती,आजादी से पहेले राजस्थान का नाम "राजपूताना" था, जिसे आजादी के बाद बदल कर राजस्थान कर दिया गया, राजपूताना पर राजपूतो ने हजारो सालो तक राज किया था जिसकी वजह से इस पूरे प्रदेश को राजपूताना कहा गया, 30 मार्च 1949 मे इस राजपूताना का नाम बदल कर राजस्थान कर दिया गया, क्योकी प्रदेश मे सभी 36 जातीया रहेती है और प्रदेश का नाम सिर्फ एक जाती पर से था,
भौगोलिक स्थिति
3,42,239 वर्ग किलोमीटर/2,13,899 वर्ग मील क्षेत्रफल वाले इस इलाक़े के दो भौगोलिक खण्ड हैं, अरावली पर्वत श्रृंखला का पश्चिमोत्तर क्षेत्र-जो अनुपजाऊ व ज़्यादातर रेतीला है। इसमें थार मरुस्थल का एक हिस्सा शामिल है और पर्वत श्रृंखला का दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र-जो सामान्यत: ऊँचा तथा अधिक उपजाऊ है। इस प्रकार समस्त क्षेत्र एक ऐसे सघन अवरोध का निर्माण करता है, जिसमें उत्तर भारत के मैदान और प्रायद्वीपीय भारत के मुख्य पठार के मध्य स्थित पहाड़ी और पठारी क्षेत्र सम्मिलित हैं।
राजस्थान का उदय
राजपुताना में 23 राज्य, एक सरदारी, एक जागीर और अजमेर-मेवाड़ का ब्रिटिश ज़िला शामिल थे। शासक राजकुमारों में अधिकांश राजपूत थे। ये राजपूताना के ऐतिहासिक क्षेत्र के क्षत्रिय थे, जिन्होंने सातवीं शताब्दी में इस क्षेत्र में प्रवेश करना आरम्भ किया। जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, जयपुर और उदयपुर सबसे बड़े राज्य थे। 1947 में विभिन्न चरणों में इन राज्यों का एकीकरण हुआ, जिसके परिणामस्वरूप राजस्थान राज्य अस्तित्व में आया। दक्षिण-पूर्व राजपूताना के कुछ पुराने क्षेत्र मध्य प्रदेश और दक्षिण-पश्चिम में और कुछ क्षेत्र अब गुजरात का हिस्सा हैं।
इतिहास
भारत में मुसलमानों का राज्य स्थापित होने के पूर्व राजस्थान में कई शक्तिशाली राजपूत जातियों के वंश शासन कर रहे थे और उनमें सबसे प्राचीन चालुक्य और राष्ट्रकूट थे। इसके उपरान्त कन्नौज के राठौरों (राष्ट्रकूट), अजमेर के चौहानों, अन्हिलवाड़ के सोलंकियों, मेवाड़ के गहलोतों या सिसोदियों और जयपुर के कछवाहों ने इस प्रदेश के भिन्न-भिन्न भागों में अपने राज्य स्थापित कर लिये। राजपूत जातियों में फूट और परस्पर युद्धों के फलस्वरूप वे शक्तहीन हो गए। यद्यपि इनमें से अधिकांश ने बारहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में मुसलमान आक्रमणकारियों का वीरतापूर्वक सामना किया, तथापि प्राय: सम्पूर्ण राजपूताने के राजवंशों को दिल्ली सल्तनत की सर्वोपरी सत्ता स्वीकार करनी पड़ी।
राणा साँगा की पराजय
दिल्ली सल्तनत की सत्ता स्वीकार करने के बाद भी मुसलमानों की यह प्रभुसत्ता राजपूत शासकों को सदेव खटकती रही और जब कभी दिल्ली सल्तनत में दुर्बलता के लक्षण दृष्टिगत होते, वे अधीनता से मुक्त होने को प्रयत्नशील हो उठते। 1520 ई. में बाबर के नेतृत्व में मुग़लों के आक्रमण के समय राजपूताना दिल्ली के सुल्तानों के प्रभाव से मुक्त हो चला था और मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह ने बाबर के दिल्ली पर अधिकार का विरोध किया। 1526 ई. में खानवा के युद्ध में राणा की पराजय हुई और मुग़लों ने दिल्ली के सुल्तानों का राजपूताने पर नाममात्र को बचा प्रभुत्व फिर से स्थापित कर लिया।
मुग़लों से शान्ति
इस पराजय के बाद भी राजपूतों का विरोध शान्त न हुआ। अकबर की राजनीतिक सूझ-बूझ और दूरदर्शिता का प्रभाव इन पर अवश्य पड़ा और मेवाड़ के अतिरिक्त अन्य सभी राजपूत शासक मुग़लों के समर्थक और भक्त बन गए। अन्त में जहाँगीर के शासनकाल में मेवाड़ ने भी मुग़लों की अधीनता स्वीकार कर ली। औरंगज़ेब के सिंहासनारूढ़ होने तक राजपूताने के शासक मुग़लों के स्वामिभक्त बने रहे। परन्तु औरंगज़ेब की धार्मिक असहिष्णुता की नीति के कारण दोनों पक्षों में युद्ध हुआ। बाद में एक समझौते के फलस्वरूप राजपूताने में शान्ति स्थापित हुई।
अंग्रेज़ों की शरण
प्रतापी मुग़लों के पतन से भी राजपूताने के राजपूत शासकों का कोई लाभ नहीं हुआ, क्योंकि 1756 ई. के लगभग राजपूतों में मराठों का शक्ति विस्तार आरम्भ हो गया। 18वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में भारत की अव्यवस्थित राजनीतिक दशा में उलझनें तथा मराठों एवं पिण्डारियों की लूटमार से त्रस्त होने के कारण राजपूताने के शासकों का इतना मनोबल गिर गया कि उन्होंने अपनी सुरक्षा हेतु अंग्रेज़ों की शरण ली।
भारतीय संघ
भारतीय गणतंत्र की स्थापना के उपरान्त कुछ राजपूत रियासतें मार्च, 1948 ई. में और कुछ एक वर्ष बाद भारतीय संघ में सम्मिलित हो गईं। इस प्रदेश का आधुनिक नाम राजस्थान और इसकी राजधानी जयपुर है। राजप्रमुख (अब राज्यपाल) का निवास तथा विधानसभा की बैठकें भी जयपुर में ही होती हैं।
इन्हें भी देखें
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- (पुस्तक 'भारत ज्ञानकोश') पृष्ठ संख्या-59
- (पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-400
राजपूत का मतलब
राजपूतों के लिये यह कहा जाता है कि वह केवल राजकुल में ही पैदा हुआ होगा,इसलिये ही राजपूत नाम चला,लेकिन राजा के कुल मे तो कितने ही लोग और जातियां पैदा हुई है सभी को राजपूत कहा जाता,यह राजपूत शब्द राजकुल मे पैदा होने से नही बल्कि राजा जैसा बाना रखने और राजा जैसा धर्म "सर्व जन हिताय,सर्व जन सुखाय" का रखने से राजपूत शब्द की उत्पत्ति हुयी। राजपूत को तीन शब्दों में प्रयोग किया जाता है,पहला "राजपूत",दूसरा "क्षत्रिय"और तीसरा "ठाकुर",आज इन शब्दों की भ्रान्तियों के कारण यह राजपूत समाज कभी कभी बहुत ही संकट में पड जाता है। राजपूत कहलाने से आज की सरकार और देश के लोग यह समझ बैठते है कि यह जाति बहुत ऊंची है और इसे जितना हो सके नीचा दिखाया जाना चाहिये,नीचा दिखाने के लिये लोग संविधान का सहारा ले बैठे है,संविधान भी उन लोगों के द्वारा लिखा गया है जिन्हे राजपूत जाति से कभी पाला नही पडा,राजपूताने के किसी आदमी से अगर संविधान बनवाया जाता तो शायद यह छीछालेदर नही होती।
खूंख्वार बनाने के लिये राजनीति और समाज जिम्मेदार है
राजपूत कभी खूंख्वार नही था,उसे केवल रक्षा करनी आती थी,लेकिन समाज के तानो से और समाज की गिरती व्यवस्था को देखने के बाद राजपूत खूंख्वार होना शुरु हुआ है,राजपूत को अपशब्द पसंद नही है। वह कभी किसी भी प्रकार की दुर्वव्यवस्था को पसंद नही करता है।
(उपरोक्त तस्वीर श्री रणजीत सिंह ने भेजी है)
(उपरोक्त तस्वीर श्री रणजीत सिंह ने भेजी है)
राजपूतों की वंशावली
चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण
भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान
चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण."
अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।
सूर्य वंश की दस शाखायें:-
१. गहलोत/सिसोदिया २. राठौड ३. बडगूजर/सिकरवार ४. कछवाह ५. दिक्खित ६. गौर ७. गहरवार ८. डोगरा ९.बल्ला १०.वैस
चन्द्र वंश की दस शाखायें:-
१.जादौन२.भाटी३.तोमर४.चन्देल५.छोंकर६.झाला७.सिलार८.वनाफ़र ९.कटोच१०. सोमवंशी
अग्निवंश की चार शाखायें:-
१.चौहान२.सोलंकी३.परिहार ४.पमार.
ऋषिवंश की बारह शाखायें:-
१.सेंगर२.कनपुरिया३.गर्गवंशी(हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त के वंशज)४.दायमा५.गौतम६.अनवार (राजा जनक के वंशज)७.दोनवार८.दहिया(दधीचि ऋषि के वंशज)९.चौपटखम्ब १०.काकन११.शौनक १२.बिसैन
चौहान वंश की चौबीस शाखायें:-
१.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल८.भदौरिया ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा १७.रूसिया १८.चांदा१९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर.
क्षत्रिय जातियो की सूची
क्रमांक | नाम | गोत्र | वंश | स्थान और जिला |
---|---|---|---|---|
१. | सूर्यवंशी | भारद्वाज | सूर्य | बुलन्दशहर आगरा मेरठ अलीगढ |
२. | शौनक | शौन | भ्रृगुवंशी | इलाहाबाद परगना मह |
३. | सिसोदिया | बैजवापेड | गहलोत | महाराणा उदयपुर स्टेट |
४. | कछवाहा | गौतम,वशिष्ठ,मानव | सूर्य | महाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य |
५. | राठौड | गौतम,कश्यप,भारद्वाज,शान्डिल्य | गहरवार | महाराजा जोधपुर ,बीकानेर,किशनगढ़ और पूर्व और मालवा |
६. | सोमवंशी | अत्रय | चन्द्र | प्रतापगढ और जिला हरदोई |
७. | यदुवंशी | अत्रय | चन्द्र | राजकरौली राजपूताने में |
८. | भाटी | अत्रय | जादौन | महारजा जैसलमेर राजपूताना |
९. | जाडेचा | अत्रय | यदुवंशी | महाराजा कच्छ भुज |
१०. | जादवा | अत्रय | जादौन | शाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा |
११. | तोमर | अत्रय, व्याघ्र, गार्गेय | चन्द्र | पाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर |
१२. | कटियार | व्याघ्र | तोंवर | धरमपुर का राज और हरदोई |
१३. | पालीवार | व्याघ्र | चन्द्र | गोरखपुर |
१४. | सत्पोखरिया | भारद्वाज | राठौड(चाँपावत) | मऊ जिला घोसी, इंदारा |
१५. | परिहार, वरगाही | कौशल्य, कश्यप | अग्नि | बांदा जिला, रीवा राज्य में बघेलखंड |
१६. | तखी | कौशल्य | परिहार | पंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में |
१७. | पंवार | वशिष्ठ | अग्नि | मालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया |
१८. | सोलंकी | भारद्वाज | अग्नि | राजपूताना मालवा सोरों जिला एटा |
१९. | चौहान | वत्स | अग्नि | राजपूताना पूर्व और सर्वत्र |
२०. | हाडा | वत्स | चौहान | कोटा बूंदी और हाडौती देश |
२१. | खींची | वत्स | चौहान | खींचीवाडा मालवा ग्वालियर |
२२. | भदौरिया | वत्स | चौहान | नौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर |
२३. | देवडा | वत्स | चौहान | राजपूताना सिरोही राज |
२४. | शम्भरी | वत्स | चौहान | नीमराणा रानी का रायपुर पंजाब |
२५. | बच्छगोत्री | वत्स | चौहान | प्रतापगढ सुल्तानपुर |
२६. | राजकुमार | वत्स | चौहान | दियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला |
२७. | पवैया | वत्स | चौहान | ग्वालियर |
२८. | गौर,गौड | भारद्वाज | सूर्य | शिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ |
२९. | वैस | भारद्वाज | सूर्य | आजमगढ उन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में |
३०. | गहरवार | कश्यप | सूर्य | माडा हरदोई उन्नाव बांदा पूर्व |
३१. | सेंगर | गौतम | ब्रह्मक्षत्रिय | जगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन |
३२. | कनपुरिया | भारद्वाज | ब्रह्मक्षत्रिय | पूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं |
३३. | बिसेन | अत्रय,वत्स,भारद्वाज,पाराशर,शान्डिल्य | ब्रह्मक्षत्रिय | गोरखपुर गोंडा प्रतापगढ महराजगंज (निचलौल के उत्तर क्षेत्र के समीप) हैं |
३४. | निकुम्भ | वशिष्ठ,भारद्वाज | सूर्य | मऊ गोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर |
३५. | श्रीनेत | भारद्वाज | निकुम्भ | गाजीपुर बस्ती गोरखपुर |
३६. | कटहरिया | वशिष्ठ्याभारद्वाज, | सूर्य | बरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर |
३७. | वाच्छिल | अत्रयवच्छिल | चन्द्र | मथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर |
३८. | बढगूजर | वशिष्ठ | सूर्य | अनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर |
३९. | झाला | मरीच, कश्यप, मार्कण्डे | चन्द्र | धागधरा मेवाड झालावाड कोटा |
४०. | गौतम | गौतम | ब्रह्मक्षत्रिय | राजा अर्गल फ़तेहपुर |
४१. | रैकवार | भारद्वाज | सूर्य | बहरायच सीतापुर बाराबंकी |
४२. | करचुल हैहय | कृष्णात्रेय | चन्द्र | बलिया फ़ैजाबाद अवध |
४३. | चन्देल | चान्द्रायन | चन्द्रवंशी | गिद्धौर ,कानपुर, फ़र्रुखाबाद, बुन्देलखंड, पंजाब, गुजरात |
४४. | जनवार | कौशल्य | चन्द्रवंशी | बलरामपुर अवध के जिलों में |
४५. | बहेलिया | भारद्वाज, | वैस (उप जाति सिसोदिया )की गोद सिसोदिया | रायबरेली बाराबंकी |
४६. | दीत्तत | कश्यप | सूर्यवंश की शाखा | उन्नाव, बस्ती, प्रतापगढ, जौनपुर, रायबरेली ,बांदा |
४७. | सिलार | शौनिक | चन्द्र | सूरत राजपूतानी |
४८. | सिकरवार | भारद्वाज | बढगूजर | ग्वालियर, आगरा और उत्तरप्रदेश में |
४९. | सुरवार | गर्ग | सूर्य | कठियावाड में |
५०. | सुर्वैया | वशिष्ठ | यदुवंश | काठियावाड |
५१. | मोरी | ब्रह्मगौतम | सूर्य | मथुरा ,आगरा ,धौलपुर |
५२. | टांक (तत्तक) | शौनिक | नागवंश | मैनपुरी और पंजाब |
५३. | गुप्त | गार्ग्य | चन्द्र | अब इस वंश का पता नही है |
५४. | कौशिक | कौशिक | चन्द्र | बलिया, आजमगढ, गोरखपुर |
५५. | भृगुवंशी | भार्गव | ब्रह्मक्षत्रिय | वनारस, बलिया, आजमगढ, गोरखपुर |
५६. | गर्गवंशी | गर्ग | ब्रह्मक्षत्रिय | आजमगढ, नरसिंहपुर सुल्तानपुर,अवध,बस्ती,फैजाबाद |
५७. | पडियारिया, | देवल,सांकृतसाम | ब्रह्मक्षत्रिय | राजपूताना |
५८. | ननवग | कौशल्य | चन्द्र | जौनपुर जिला |
५९. | वनाफ़र | पाराशर,कश्यप | चन्द्र | बुन्देलखन्ड बांदा वनारस |
६०. | जैसवार | कश्यप | यदुवंशी | मिर्जापुर एटा मैनपुरी |
६१. | चौलवंश | भारद्वाज | सूर्य | दक्षिण मद्रास तमिलनाडु कर्नाटक में |
६२. | निमवंशी | कश्यप | सूर्य | संयुक्त प्रांत |
६३. | वैनवंशी | वैन्य | सोमवंशी | मिर्जापुर |
६४. | दाहिमा | गार्गेय | ब्रह्मक्षत्रिय | काठियावाड राजपूताना |
६५. | पुण्डीर | कपिल | ब्रह्मक्षत्रिय | पंजाब गुजरात रींवा यू.पी. |
६६. | तुलवा | आत्रेय | चन्द्र | राजाविजयनगर |
६७. | कटोच | कश्यप | चन्द्र | राजानादौन कोटकांगडा |
६८. | चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावत | वशिष्ठ | पंवार की शाखा | मलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड |
६९. | अहवन | वशिष्ठ | चावडा,कुमावत | खेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी |
७०. | डौडिया | वशिष्ठ | पंवार शाखा | बुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब |
७१. | गोहिल | बैजबापेण | गहलोत शाखा | काठियावाड |
७२. | बुन्देला | कश्यप | गहरवारशाखा | बुन्देलखंड के रजवाडे |
७३. | काठी | कश्यप | गहरवारशाखा | काठियावाड झांसी बांदा |
७४. | जोहिया | पाराशर | चन्द्र | पंजाब देश मे |
७५. | गढावंशी | कांवायन | चन्द्र | गढावाडी के लिंगपट्टम में |
७६. | मौखरी | अत्रय | चन्द्र | प्राचीन राजवंश था |
७७. | लिच्छिवी | कश्यप | सूर्य | प्राचीन राजवंश था |
७८. | बाकाटक | विष्णुवर्धन | सूर्य | अब पता नहीं चलता है |
७९. | पाल | कश्यप | सूर्य | यह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है |
८०. | सैन | अत्रय | ब्रह्मक्षत्रिय | यह वंश भी भारत में बिखर गया है |
८१. | कदम्ब | मान्डग्य | ब्रह्मक्षत्रिय | दक्षिण महाराष्ट्र मे हैं |
८२. | पोलच | भारद्वाज | ब्रह्मक्षत्रिय | दक्षिण में मराठा के पास में है |
८३. | बाणवंश | कश्यप | असुरवंश | श्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में |
८४. | काकुतीय | भारद्वाज | चन्द्र,प्राचीन सूर्य था | अब पता नही मिलता है |
८५. | सुणग वंश | भारद्वाज | चन्द्र,पाचीन सूर्य था, | अब पता नही मिलता है |
८६. | दहिया | गौतम | ब्रह्मक्षत्रिय | मारवाड में जोधपुर |
८७. | जेठवा | कश्यप | हनुमानवंशी | राजधूमली काठियावाड |
८८. | मोहिल | वत्स | चौहान शाखा | महाराष्ट्र मे है |
८९. | बल्ला | भारद्वाज,कश्यप | सूर्य | काठियावाड मे मिलते हैं |
९०. | डाबी | वशिष्ठ | यदुवंश | राजस्थान |
९१. | खरवड | वशिष्ठ | यदुवंश | मेवाड उदयपुर |
९२. | सुकेत | भारद्वाज | गौड की शाखा | पंजाब में पहाडी राजा |
९३. | पांड्य | अत्रय | चन्द | अब इस वंश का पता नहीं |
९४. | पठानिया | पाराशर | वनाफ़रशाखा | पठानकोट राजा पंजाब |
९५. | बमटेला | शांडल्य | विसेन शाखा | हरदोई फ़र्रुखाबाद |
९६. | बारहगैया | वत्स | चौहान | गाजीपुर |
९७. | भैंसोलिया | वत्स | चौहान | भैंसोल गाग सुल्तानपुर |
९८. | चन्दोसिया | भारद्वाज | वैस | सुल्तानपुर |
९९. | चौपटखम्ब | कश्यप | ब्रह्मक्षत्रिय | जौनपुर |
१००. | धाकरे | भारद्वाज(भृगु) | ब्रह्मक्षत्रिय | आगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर |
१०१. | धन्वस्त | यमदाग्नि | ब्रह्मक्षत्रिय | जौनपुर आजमगढ वनारस |
१०२. | धेकाहा | कश्यप | पंवार की शाखा | भोजपुर शाहाबाद |
१०३. | दोबर(दोनवार) | वत्स या कश्यप | ब्रह्मक्षत्रिय | गाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर |
१०४. | हरद्वार | भार्गव | चन्द्र शाखा | आजमगढ |
१०५. | जायस | कश्यप | राठौड की शाखा | रायबरेली मथुरा |
१०६. | जरोलिया | व्याघ्रपद | चन्द्र | बुलन्दशहर |
१०७. | जसावत | मानव्य | कछवाह शाखा | मथुरा आगरा |
१०८. | जोतियाना(भुटियाना) | मानव्य | कश्यप,कछवाह शाखा | मुजफ़्फ़रनगर मेरठ |
१०९. | घोडेवाहा | मानव्य | कछवाह शाखा | लुधियाना होशियारपुर जालन्धर |
११०. | कछनिया | शान्डिल्य | ब्रह्मक्षत्रिय | अवध के जिलों में |
१११. | काकन | भृगु | ब्रह्मक्षत्रिय | गाजीपुर आजमगढ |
११२. | कासिब | कश्यप | कछवाह शाखा | शाहजहांपुर |
११३. | किनवार | कश्यप | सेंगर की शाखा | पूर्व बंगाल और बिहार में |
११४. | बरहिया | गौतम | सेंगर की शाखा | पूर्व बंगाल और बिहार |
११५. | लौतमिया | भारद्वाज | बढगूजर शाखा | बलिया गाजी पुर शाहाबाद |
११६. | मौनस | मौन | कछवाह शाखा | मिर्जापुर प्रयाग जौनपुर |
११७. | नगबक | मानव्य | कछवाह शाखा | जौनपुर आजमगढ मिर्जापुर |
११८. | पलवार | व्याघ्र | सोमवंशी शाखा | आजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर |
११९. | रायजादे | पाराशर | चन्द्र की शाखा | पूर्व अवध में |
१२०. | सिंहेल | कश्यप | सूर्य | आजमगढ परगना मोहम्दाबाद |
१२१. | तरकड | कश्यप | दिक्खित शाखा | आगरा मथुरा |
१२२. | तिसहिया | कौशल्य | परिहार | इलाहाबाद परगना हंडिया |
१२३. | तिरोता | कश्यप | तंवर की शाखा | आरा शाहाबाद भोजपुर |
१२४. | उदमतिया | वत्स | ब्रह्मक्षत्रिय | आजमगढ गोरखपुर |
१२५. | भाले | वशिष्ठ | पंवार | अलीगढ |
१२६. | भालेसुल्तान | भारद्वाज | वैस की शाखा | रायबरेली लखनऊ उन्नाव |
१२७. | जैवार | व्याघ्र | तंवर की शाखा | दतिया झांसी बुन्देलखंड |
१२८. | सरगैयां | व्याघ्र | सोमवंश | हमीरपुर बुन्देलखण्ड |
१२९. | किसनातिल | अत्रय | तोमरशाखा | दतिया बुन्देलखंड |
१३०. | टडैया | भारद्वाज | सोलंकीशाखा | झांसी ललितपुर बुन्देलखंड |
१३१. | खागर | अत्रय | यदुवंश शाखा | जालौन हमीरपुर झांसी |
१३२. | पिपरिया | भारद्वाज | गौडों की शाखा | बुन्देलखंड |
१३३. | सिरसवार | अत्रय | चन्द्र शाखा | बुन्देलखंड |
१३४. | खींचर | वत्स | चौहान शाखा | फ़तेहपुर में असौंथड राज्य |
१३५. | खाती | कश्यप | दिक्खित शाखा | बुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा |
१३६. | आहडिया | बैजवापेण | गहलोत | आजमगढ |
१३७. | उदावत | गौतम | राठौड | पाली |
१३८. | उजैने | वशिष्ठ | पंवार | आरा डुमरिया |
१३९. | अमेठिया | भारद्वाज | गौड | अमेठी लखनऊ सीतापुर |
१४०. | दुर्गवंशी | कश्यप | दिक्खित | राजा जौनपुर राजाबाजार |
१४१. | बिलखरिया | कश्यप | दिक्खित | प्रतापगढ उमरी राजा |
१४२. | डोगरा | कश्यप | सूर्य | कश्मीर राज्य और बलिया |
१४३. | निर्वाण | वत्स | चौहान | राजपूताना (राजस्थान) |
१४४. | जाटू | व्याघ्र | तोमर | राजस्थान,हिसार पंजाब |
१४५. | नरौनी | मानव्य | कछवाहा | बलिया आरा |
१४६. | भनवग | भारद्वाज | कनपुरिया | जौनपुर |
१४७. | गिदवरिया | वशिष्ठ | पंवार | बिहार मुंगेर भागलपुर |
१४८. | रक्षेल | कश्यप | सूर्य | रीवा राज्य में बघेलखंड |
१४९. | कटारिया | भारद्वाज | सोलंकी | झांसी मालवा बुन्देलखंड |
१५०. | रजवार | वत्स | चौहान | पूर्व मे बुन्देलखंड |
१५१. | द्वार | व्याघ्र | तोमर | जालौन झांसी हमीरपुर |
१५२. | इन्दौरिया | व्याघ्र | तोमर | आगरा मथुरा बुलन्दशहर |
१५३. | छोकर | अत्रय | यदुवंश | अलीगढ मथुरा बुलन्दशहर |
१५४. | जांगडा | वत्स | चौहान | बुलन्दशहर पूर्व में झांसी |
१५५. | गहलोत | बैजवापेण | सूर्य | मथुरा कानपुर और पूर्वी जिले |
१५६. | बघेल | कश्यप या भारद्वाज | सोलंकी | रीवा राज्य में बघेलखंड |
१५७. | दिक्खित | कश्यप | सूर्य | बुन्देलखंड |
१५८. | बंधलगोती | भारद्वाज | ब्रह्मक्षत्रिय | अमेठी,सुल्तानपुर |
१५९. | कलहंस | अंगिरस | परिहार | प्रतापगढ,बहरायच,गोरखपुर,बस्ती |
१६०. | बेरुआर | भारद्वाज | तोमर | बलिया,आजमगढ,मऊ |
चौहान वंश
चह्वान (चतुर्भुज)
अग्निवंश के सम्मेलन कर्ता ऋषि
१.वत्सम ऋषि,२.भार्गव ऋषि,३.अत्रि ऋषि,४.विश्वामित्र,५.चमन ऋषि
विभिन्न ऋषियों ने प्रकट होकर अग्नि में आहुति दी तो विभिन्न चार वंशों की उत्पत्ति हुयी जो इस इस प्रकार से है-
१.पाराशर ऋषि ने प्रकट होकर आहुति दी तो परिहार की उत्पत्ति हुयी (पाराशर गोत्र)
२.वशिष्ठ ऋषि की आहुति से परमार की उत्पत्ति हुयी (वशिष्ठ गोत्र)
३.भारद्वाज ऋषि ने आहुति दी तो सोलंकी की उत्पत्ति हुयी (भारद्वाज गोत्र)
४.वत्स ऋषि ने आहुति दी तो चतुर्भुज चौहान की उत्पत्ति हुयी (वत्स गोत्र)
२.वशिष्ठ ऋषि की आहुति से परमार की उत्पत्ति हुयी (वशिष्ठ गोत्र)
३.भारद्वाज ऋषि ने आहुति दी तो सोलंकी की उत्पत्ति हुयी (भारद्वाज गोत्र)
४.वत्स ऋषि ने आहुति दी तो चतुर्भुज चौहान की उत्पत्ति हुयी (वत्स गोत्र)
चौहानों की उत्पत्ति आबू शिखर मे हुयी
दोहा-
चौहान को वंश उजागर है,जिन जन्म लियो धरि के भुज चारी,
बौद्ध मतों को विनास कियो और विप्रन को दिये वेद सुचारी॥
दोहा-
चौहान को वंश उजागर है,जिन जन्म लियो धरि के भुज चारी,
बौद्ध मतों को विनास कियो और विप्रन को दिये वेद सुचारी॥
चौहान की कई पीढियों के बाद अजय पाल जी महाराज पैदा हुये
जिन्होने आबू पर्वत छोड कर अजमेर शहर बसाया
अजमेर मे पृथ्वी तल से १५ मील ऊंचा तारागढ किला बनाया जिसकी वर्तमान में १० मील ऊंचाई है,महाराज अजयपाल जी चक्रवर्ती सम्राट हुये.

इसी में कई वंश बाद माणिकदेवजू हुये,जिन्होने सांभर झील बनवाई थी।
सांभर बिन अलोना खाय,माटी बिके यह भेद कहाय"
इनकी बहुत पीढियों के बाद माणिकदेवजू उर्फ़ लाखनदेवजू हुये
इनके चौबीस पुत्र हुये और इन्ही नामो से २४ शाखायें चलीं
चौबीस शाखायें इस प्रकार से है-
१. मुहुकर्ण जी उजपारिया या उजपालिया चौहान पृथ्वीराज का वंश
२.लालशाह उर्फ़ लालसिंह मदरेचा चौहान जो मद्रास में बसे हैं
३. हरि सिंह जी धधेडा चौहान बुन्देलखंड और सिद्धगढ में बसे है
४. सारदूलजी सोनगरा चौहान जालोर झन्डी ईसानगर मे बसे है
५. भगतराजजी निर्वाण चौहान खंडेला से बिखराव
६. अष्टपाल जी हाडा चौहान कोटा बूंदी गद्दी सरकार से सम्मानित २१ तोपों की सलामी
७.चन्द्रपाल जी भदौरिया चौहान चन्द्रवार भदौरा गांव नौगांव जिला आगरा
८.चौहिल जी चौहिल चौहान नाडौल मारवाड बिखराव हो गया
९. शूरसेन जी देवडा चौहान सिरोही (सम्मानित)
१०.सामन्त जी साचौरा चौहान सन्चौर का राज्य टूट गया
११.मौहिल जी मौहिल चौहान मोहिल गढ का राज्य टूट गया
१२.खेवराज जी उर्फ़ अंड जी वालेगा चौहान पटल गढ का राज्य टूट गया बिखराव
१३. पोहपसेन जी पवैया चौहान पवैया गढ गुजरात
१४. मानपाल जी मोरी चौहान चान्दौर गढ की गद्दी
१५. राजकुमारजी राजकुमार चौहान बालोरघाट जिला सुल्तानपुर में
१६.जसराजजी जैनवार चौहान पटना बिहार गद्दी टूट गयी
१७.सहसमल जी वालेसा चौहान मारवाड गद्दी
१८.बच्छराजजी बच्छगोत्री चौहान अवध में गद्दी टूटगयी.
१९.चन्द्रराजजी चन्द्राणा चौहान अब यह कुल खत्म हो गया है
२०. खनगराजजी कायमखानी चौहान झुन्झुनू मे है लेकिन गद्दी टूट गयी है,मुसलमान बन गये है
२१. हर्राजजी जावला चौहान जोहरगढ की गद्दी थे लेकिन टूट गयी.
२२.धुजपाल जी गोखा चौहान गढददरेश मे जाकर रहे.
२३.किल्लनजी किशाना चौहान किशाना गोत्र के गूजर हुये जो बांदनवाडा अजमेर मे है
२४.कनकपाल जी कटैया चौहान सिद्धगढ मे गद्दी (पंजाब)
२.लालशाह उर्फ़ लालसिंह मदरेचा चौहान जो मद्रास में बसे हैं
३. हरि सिंह जी धधेडा चौहान बुन्देलखंड और सिद्धगढ में बसे है
४. सारदूलजी सोनगरा चौहान जालोर झन्डी ईसानगर मे बसे है
५. भगतराजजी निर्वाण चौहान खंडेला से बिखराव
६. अष्टपाल जी हाडा चौहान कोटा बूंदी गद्दी सरकार से सम्मानित २१ तोपों की सलामी
७.चन्द्रपाल जी भदौरिया चौहान चन्द्रवार भदौरा गांव नौगांव जिला आगरा
८.चौहिल जी चौहिल चौहान नाडौल मारवाड बिखराव हो गया
९. शूरसेन जी देवडा चौहान सिरोही (सम्मानित)
१०.सामन्त जी साचौरा चौहान सन्चौर का राज्य टूट गया
११.मौहिल जी मौहिल चौहान मोहिल गढ का राज्य टूट गया
१२.खेवराज जी उर्फ़ अंड जी वालेगा चौहान पटल गढ का राज्य टूट गया बिखराव
१३. पोहपसेन जी पवैया चौहान पवैया गढ गुजरात
१४. मानपाल जी मोरी चौहान चान्दौर गढ की गद्दी
१५. राजकुमारजी राजकुमार चौहान बालोरघाट जिला सुल्तानपुर में
१६.जसराजजी जैनवार चौहान पटना बिहार गद्दी टूट गयी
१७.सहसमल जी वालेसा चौहान मारवाड गद्दी
१८.बच्छराजजी बच्छगोत्री चौहान अवध में गद्दी टूटगयी.
१९.चन्द्रराजजी चन्द्राणा चौहान अब यह कुल खत्म हो गया है
२०. खनगराजजी कायमखानी चौहान झुन्झुनू मे है लेकिन गद्दी टूट गयी है,मुसलमान बन गये है
२१. हर्राजजी जावला चौहान जोहरगढ की गद्दी थे लेकिन टूट गयी.
२२.धुजपाल जी गोखा चौहान गढददरेश मे जाकर रहे.
२३.किल्लनजी किशाना चौहान किशाना गोत्र के गूजर हुये जो बांदनवाडा अजमेर मे है
२४.कनकपाल जी कटैया चौहान सिद्धगढ मे गद्दी (पंजाब)
उपरोक्त प्रशाखाओं में अब करीब १२५ हैं
बाद में आनादेवजू पैदा हुये
आनादेवजू के सूरसेन जी और दत्तकदेवजू पैदा हुये
सूरसेन जी के ढोडेदेवजी हुये जो ढूढाड प्रान्त में था,यह नरमांस भक्षी भी थे.
ढोडेदेवजी के चौरंगी-—सोमेश्वरजी--—कान्हदेवजी हुये
आनादेवजू के सूरसेन जी और दत्तकदेवजू पैदा हुये
सूरसेन जी के ढोडेदेवजी हुये जो ढूढाड प्रान्त में था,यह नरमांस भक्षी भी थे.
ढोडेदेवजी के चौरंगी-—सोमेश्वरजी--—कान्हदेवजी हुये
सोम्श्वरजी को चन्द्रवंश में उत्पन्न अनंगपाल की पुत्री कमला ब्याही गयीं थीं
सोमेश्वरजी के पृथ्वीराजजी हुये
पृथ्वीराजजी के-
रेनसी कुमार जो कन्नौज की लडाई मे मारे गये
अक्षयकुमारजी जो महमूदगजनवी के साथ लडाई मे मारे गये
बलभद्र जी गजनी की लडाई में मारे गये
इन्द्रसी कुमार जो चन्गेज खां की लडाई में मारे गये
पृथ्वीराजजी के-
रेनसी कुमार जो कन्नौज की लडाई मे मारे गये
अक्षयकुमारजी जो महमूदगजनवी के साथ लडाई मे मारे गये
बलभद्र जी गजनी की लडाई में मारे गये
इन्द्रसी कुमार जो चन्गेज खां की लडाई में मारे गये
पृथ्वीराज ने अपने चाचा कान्हादेवजी का लडका गोद लिया जिसका नाम राव हम्मीरदेवजू था
हम्मीरदेवजू के-दो पुत्र हुये रावरतन जी और खानवालेसी जी
रावरतन सिंह जी ने नौ विवाह किये थे और जिनके अठारह संताने थीं,
सत्रह पुत्र मारे गये
एक पुत्र चन्द्रसेनजी रहे
चार पुत्र बांदियों के रहे
हम्मीरदेवजू के-दो पुत्र हुये रावरतन जी और खानवालेसी जी
रावरतन सिंह जी ने नौ विवाह किये थे और जिनके अठारह संताने थीं,
सत्रह पुत्र मारे गये
एक पुत्र चन्द्रसेनजी रहे
चार पुत्र बांदियों के रहे
खानवालेसी जी हुये जो नेपाल चले गये और सिसौदिया चौहान कहलाये.
रावरतन देवजी के पुत्र संकट देवजी हुये
संकटदेव जी के छ: पुत्र हुये
१. धिराज जू जो रिजोर एटा में जाकर बसे इन्हे राजा रामपुर की लडकी ब्याही गयी थी
२. रणसुम्मेरदेवजी जो इटावा खास में जाकर बसे और बाद में प्रतापनेर में बसे
३. प्रतापरुद्रजी जो मैनपुरी में बसे
४. चन्द्रसेन जी जो चकरनकर में जाकर बसे
५. चन्द्रशेव जी जो चन्द्रकोणा आसाम में जाकर बसे इनकी आगे की संतति में सबल सिंह चौहान हुये जिन्होने महाभारत पुराण की टीका लिखी.
संकटदेव जी के छ: पुत्र हुये
१. धिराज जू जो रिजोर एटा में जाकर बसे इन्हे राजा रामपुर की लडकी ब्याही गयी थी
२. रणसुम्मेरदेवजी जो इटावा खास में जाकर बसे और बाद में प्रतापनेर में बसे
३. प्रतापरुद्रजी जो मैनपुरी में बसे
४. चन्द्रसेन जी जो चकरनकर में जाकर बसे
५. चन्द्रशेव जी जो चन्द्रकोणा आसाम में जाकर बसे इनकी आगे की संतति में सबल सिंह चौहान हुये जिन्होने महाभारत पुराण की टीका लिखी.
मैनपुरी में बसे राजा प्रतापरुद्रजी के दो पुत्र हुये
१.राजा विरसिंह जू देव जो मैनपुरी में बसे
२. धारक देवजू जो पतारा क्षेत्र मे जाकर बसे
१.राजा विरसिंह जू देव जो मैनपुरी में बसे
२. धारक देवजू जो पतारा क्षेत्र मे जाकर बसे
मैनपुरी के राजा विरसिंह जू देव के चार पुत्र हुये
१. महाराजा धीरशाह जी इनसे मैनपुरी के आसपास के गांव बसे
२.राव गणेशजी जो एटा में गंज डुडवारा में जाकर बसे इनके २७ गांव पटियाली आदि हैं
३. कुंअर अशोकमल जी के गांव उझैया अशोकपुर फ़कीरपुर आदि हैं
४.पूर्णमल जी जिनके सौरिख सकरावा जसमेडी आदि गांव हैं
१. महाराजा धीरशाह जी इनसे मैनपुरी के आसपास के गांव बसे
२.राव गणेशजी जो एटा में गंज डुडवारा में जाकर बसे इनके २७ गांव पटियाली आदि हैं
३. कुंअर अशोकमल जी के गांव उझैया अशोकपुर फ़कीरपुर आदि हैं
४.पूर्णमल जी जिनके सौरिख सकरावा जसमेडी आदि गांव हैं
महाराजा धीरशाह जी के तीन पुत्र हुये
१. भाव सिंह जी जो मैनपुरी में बसे
२. भारतीचन्द जी जिनके नोनेर कांकन सकरा उमरैन दौलतपुर आदि गांव बसे
२. खानदेवजू जिनके सतनी नगलाजुला पंचवटी के गांव हैं
१. भाव सिंह जी जो मैनपुरी में बसे
२. भारतीचन्द जी जिनके नोनेर कांकन सकरा उमरैन दौलतपुर आदि गांव बसे
२. खानदेवजू जिनके सतनी नगलाजुला पंचवटी के गांव हैं
खानदेव जी के भाव सिंह जी हुये
भावसिंह जी के देवराज जी हुये
देवराज जी के धर्मांगद जी हुये
धर्मांगद जी के तीन पुत्र हुये
१. जगतमल जी जो मैनपुरी मे बसे
२. कीरत सिंह जी जिनकी संतति किशनी के आसपास है
३. पहाड सिंह जी जो सिमरई सहारा औरन्ध आदि गावों के आसपास हैं
भारती चंद जी के वंशज जिनको रायबरेली के पास गद्दी मिली । जो नोनेर से जाकर वही बस गए जिनके मुख्य गांव लालूपुर और पूरे विन्ध्यासिंह है।
लालूपुर में अखिलेश प्रताप सिंह जो वहाँ के विधायक रहे बाद में 2017 में उनकी पुत्री ने उनकी गद्दी को संभाला।
विन्ध्यासिंह से रामेश्वर चौहान के दो पुत्र मोहन और जगमोहन जाकर करौंदी बाराबंकी में बसे और जगमोहन के बडे पुत्र चंद्रभान गुरुग्राम हरियाणा में बस गए जिनके पुत्र आकर्षित चौहान है।
भावसिंह जी के देवराज जी हुये
देवराज जी के धर्मांगद जी हुये
धर्मांगद जी के तीन पुत्र हुये
१. जगतमल जी जो मैनपुरी मे बसे
२. कीरत सिंह जी जिनकी संतति किशनी के आसपास है
३. पहाड सिंह जी जो सिमरई सहारा औरन्ध आदि गावों के आसपास हैं
भारती चंद जी के वंशज जिनको रायबरेली के पास गद्दी मिली । जो नोनेर से जाकर वही बस गए जिनके मुख्य गांव लालूपुर और पूरे विन्ध्यासिंह है।
लालूपुर में अखिलेश प्रताप सिंह जो वहाँ के विधायक रहे बाद में 2017 में उनकी पुत्री ने उनकी गद्दी को संभाला।
विन्ध्यासिंह से रामेश्वर चौहान के दो पुत्र मोहन और जगमोहन जाकर करौंदी बाराबंकी में बसे और जगमोहन के बडे पुत्र चंद्रभान गुरुग्राम हरियाणा में बस गए जिनके पुत्र आकर्षित चौहान है।
वरगाही तथा बघेल वंश
बघेल( बाघेला एवं बाघेल)
जब गुजरात से सोलंकी राजपूत मध्य प्रदेश आयें तो इनके साथ कुछ परिहार राजपूत एवं कुछ मुस्लिम भी आये परन्तु कुछ समय पश्चत सोलांकी राजा व्याघ्र देव ने सोलांकी से बाघेल तथा परिहार से वरगाही वंश की स्थापना की। बघेल वंश की स्थापना व्याघ्र देव ने की जिसके कारण इन्हें व्याघ्र देव वंशज भी कहा जाता है।
चूँकि इन दोनों वंश की स्थापना होने के बाद इन दोनों राजपूतो का ज्यादा विस्तार नही हो पाया जिसके कारण इन वंशो के बारे में ज्यादा जानकरी प्राप्त नही हुई।
इन्हें अग्निकुल का वंशज माना जाता है।इतिहास में समुपलब्ध साक्ष्यों तथा भविष्यपुरांण में समुपवर्णित विवेचन कर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय बनारस के विद्वानों के द्वारा बतौर प्रमाण यजुर्वेदसंहिता, कौटिल्यार्थशास्त्र, श्रमद्भग्वद्गीता, मनुस्मृति, ऋकसंहिता पाणिनीय अष्टाध्यायी, याज्ञवल्क्यस्मृति, महाभारत, क्षत्रियवंशावली, श्रीमद्भागवत, भविष्यपुरांण, रीवा राजवंश का सेजरा, रीवा राज्य का इतिहास, बघेल खण्ड की स्थापत्यकला, अजीत फते नायक रायसा और बघेलखण्ड का आल्हा तथा वरगाहितिप्राप्तोपाधिकानॉ परिहरवंशीक्षत्रियॉणॉ वंशकीर्तनम् नामक पुस्तक में बघेल (बाघेला,सोलांकी) तथा वरगाही ( बरगाही, परिहार) वंश का वर्णन किया गया है।।।
राजपूत
राजपूत | |||
---|---|---|---|
| |||
धर्म | हिन्दू, | ||
भाषा | हिन्द-आर्य भाषाएँ | ||
वासित राज्य | भारतीय उपमहाद्वीप, मुख्यतः उत्तर भारत,सौराष्ट्र (गुजरात) |
राजपूत उत्तर भारत का एक क्षत्रिय कुल माना जाता है जो कि 'राजपुत्र' का अपभ्रंश है। राजस्थान को ब्रिटिशकाल में 'राजपुताना' भी कहा गया है। पुराने समय में आर्यजाति में केवल चार वर्णों की व्यवस्था थी। राजपूत काल में प्राचीन वर्ण व्यवस्था समाप्त हो गयी थी तथा वर्ण के स्थान पर कई जातियाँ व उप जातियाँ बन गईं थीं।[1][2] कविचंदबरदाई के कथनानुसार राजपूतों की 36 जातियाँ थी। उस समय में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजघरानों का बहुत विस्तार हुआ।
राजपूतों की उत्पत्ति
हर्षवर्धन के उपरान्त भारत में कोई भी ऐसा शक्तिशाली राजा नहीं हुआ जिसने भारत के वृहद भाग पर एकछत्र राज्य किया हो। इस युग में भारत अनेक छोटे बड़े राज्यों में विभाजित हो गया जो आपस मे लड़ते रहते थे। इनके राजा 'राजपूत' कहलाते थे तथा सातवीं से बारहवीं शताब्दी के इस युग को 'राजपूत युग' कहा गया है।[3]
राजपूतों की उत्पत्ति के संबंध मे इतिहास में दो मत प्रचलित हैं। कर्नल टोड व स्मिथ आदि के अनुसार राजपूत वह विदेशी जातियाँ है जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया था। चंद्रबरदाई लिखते हैं कि परशुराम द्वारा क्षत्रियों के सम्पूर्ण विनाश के बाद ब्राह्मणों ने आबू पर्वत पर यज्ञ किया व यज्ञ कि अग्नि से चौहान, परमार, गुर्जर-प्रतिहार व सोलंकीराजपूत वंश उत्पन्न हुए। इसे इतिहासकार विदेशियों के हिंदू समाज में विलय हेतु यज्ञ द्वारा शुद्धिकरण की पारम्परिक घटना के रूप मे देखते हैं। दूसरी ओर गौरीशंकर हीराचंद ओझा आदि विद्वानों के अनुसार राजपूत विदेशी नहीं है अपितु प्राचीन क्षत्रियों की ही संतान हैं।
सन्दर्भ
- ↑ प्रतियोगिता दर्पण संपादकगण. प्रतियोगिता दर्पण अतिरिक्त प्रति शृंखला-3, भारतीय इतिहास. उपकार प्रकाशन. पृ॰ 65.
- ↑ महेंद्र जैन. Series-3 Indian History. Pratiyogita Darpan. पृ॰ 65.
- ↑ वेदलंकार, हरिदत्त (2009). भारतीय संकृति का संक्षिप्त इतिहास. ए॰ आर॰ एस॰ पब्लिशर्स ए॰ डिस॰. पृ॰ 87. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8183460054. अभिगमन तिथि 16 जनवरी 2016.
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