विजयनगर साम्राज्य
विजयनगर साम्राज्य ವಿಜಯನಗರ ಸಾಮ್ರಾಜ್ಯ విజయనగర సామ్రాజ్యము | |||||
साम्राज्य | |||||
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ध्वज
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राजधानी | विजयनगर | ||||
शासन | राजतन्त्र | ||||
इतिहास | |||||
- | स्थापित | 1336 | |||
- | अंत | 1646 | |||
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विजयनगर साम्राज्य - १५वीं सदी में
विजयनगर साम्राज्य (1336-1646) मध्यकालीन दक्षिण भारत का एक साम्राज्य था। इसके राजाओं ने 310 वर्ष राज किया। इसका वास्तविक नाम कर्नाटक साम्राज्य था। इसकी स्थापना हरिहर और बुक्का राय नामक दो भाइयों ने की थी। पुर्तगाली इसे बिसनागा राज्य के नाम से जानते थे।
इस राज्य की १५६५ में भारी पराजय हुई और राजधानी विजयनगर को जला दिया गया। उसके पश्चात क्षीण रूप में यह और ८० वर्ष चला। राजधानी विजयनगर के अवशेष आधुनिक कर्नाटक राज्य में हम्पी शहर के निकट पाये गये हैं और यह एक विश्व विरासत स्थल है। पुरातात्त्विक खोज से इस साम्राज्य की शक्ति तथा धन-सम्पदा का पता चलता है।
परिचय
दक्षिण भारत के नरेश मुगल सल्तनत के दक्षिण प्रवाह को रोकने में बहुत सीमा तक असफल रहे। मुग़ल उस भूभाग में अधिक काल तक अपनी विजयपताका फहराने में समर्थ रहे। यही कारण है कि दक्षिणपथ के इतिहास में विजयनगर राज्य को विशेष स्थान दिया गया है।
दक्षिण भारत की कृष्णा नदी की सहायक तुंगभद्रा को इस बात का गर्व है कि विजयनगर उसकी गोद में पला। और विजयनगर को साम्राज्य में बदलने में योगदान है भारत के देशभक्त रक्षक कृष्ण देव राय का। उन्होंने नदी के किनारे प्रधान नगरी हंपी पर महज 300 सैनिकों के साथ हमला किया और बेहतरीन रणनीति के साथ सफल हुए । विजयनगर के पूर्वी दिशा के पड़ोसी राज्य के होयसल नरेशों का प्रधान स्थान था हंपी । इस हमले के बाद वह किसी भी हाल में विजयनगर का उदय नहीं देखना चाह रहे थे। क्योंकि विजयनगर के पूर्वगामी पड़ोसी राज्य होयसल नरेशों का प्रधान स्थान यहीं था। लेकिन होयसल यह सोचकर निश्चिंत थे की विजयनगर से होयसल राज्यों का मार्ग दुर्गम है इसलिए उत्तर के महान सम्राट् धनानंद भी दक्षिण में विजय करने का संकल्प पूरा न कर सके।
द्वारसमुद्र के शासक वीर वल्लाल तृतीय ने दिल्ली सुल्तान द्वारा नियुक्त कंपिलि के शासक मलिक मुहम्म्द के विरुद्ध लड़ाई छेड़ दी। ऐसी परिस्थिति में दिल्ली के सुल्तान ने मलिक मुहम्मद की सहायता के लिए दो (हिंदू) कर्मचारियों को नियुक्त किया जिनके नाम हरिहर तथा बुक्क थे उस समय कृष्णदेव राया ने वीर वल्लाल को समझाने की कोशिश की मगर सफल नहीं हुए। बाद में वे दिल्ली सुल्तान से मिल कर अपने दोनों भाइयों को शामिल करते हुए कृष्ण देव राय के स्वतंत्र विजयनगर राज्य पर हमला किया मगर तीनों सेनाओं को पराजय का मुख देखना पड़ा । सन् १३३६ ई. में कृष्ण देव राय के आचार्य हरिहर ने वैदिक रीति से शंकर प्रथम का राज्याभिषेक संपन्न किया और तुंगभद्रा नदी के किनारे विजयनगर नामक नगर का निर्माण किया।
विजयनगर राज्य में विभिन्न तरह के मंत्रालय बनाए गये जिसमें शासन मंत्रालय भी था जिसका इस्तेमाल तब होता था जब राजा सही फैसला न ले पाए। विजयनगर में प्रतापी एवं शक्तिशाली नरेशों की कमी न थी। युद्धप्रिय होने के अतिरिक्त, सभी हिंदू संस्कृति के रक्षक थे। स्वयं कवि तथा विद्वानों के आश्रयदाता थे। कृष्ण देव राय संगम नामक चरवाहे के पुत्र थे उनको उनके राज्य से निकाल दिया गया था । अतएव उन्हें संगम सम्राट् के नाम से शासन किया। विजयनगर राज्य के संस्थापक शंकर प्रथभ ने थोड़े समय के पश्चात् अपने वरिष्ठ तथा योग्य बंधु महादेव राय को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया। संगम वंश के तीसरे प्रतापी नरेश संगम महावीर द्वितीय ने विजयनगर राज्य को दक्षिण का एक विस्तृत, शक्तिशाली तथा सुदृढ़ साम्राज्य बना दिया। हरिहर द्वितीय के समय में सायण तथा माधव ने वेद तथा धर्मशास्त्र पर निबंधरचना की। उनके वंशजों में द्वितीय देवराय का नाम उल्लेखनीय है जिसने अपने राज्याभिषेक के पश्चात् संगम राज्य को उन्नति का चरम सीमा पर पहुँचा दिया। मुग़ल रियासतों से युद्ध करते हुए, देबराय प्रजापालन में संलग्न रहा। राज्य की सुरक्षा के निमित्त तुर्की घुड़सवार नियुक्त कर सेना की वृद्धि की। उसके समय में अनेक नवीन मंदिर तथा भवन बने।
दूसरा राजवंश सालुव नाम से प्रसिद्ध था। इस वंश के संस्थापक सालुब नरसिंह ने १४८५ से १४९० ई. तक शासन किया। उसने शक्ति क्षीण हो जाने पर अपने मंत्री नरस नायक को विजयनगर का संरक्षक बनाया। वही तुलुव वंश का प्रथम शासक माना गया है। उसने १४९० से १५०३ ई. तक शासन किया और दक्षिण में कावेरी के सुदूर भाग पर भी विजयदुंदुभी बजाई। तुलुब वंश में हंगामा तब हुआ जब कृष्णदेव राय का नाम राजा बनने में सबसे आगे था। उन्होंने १५०९ से १५३९ ई. तक शासन किया और विजयनगर को भारत का उस समय का सबसे बड़ा साम्राज्य बना दिया बस दिल्ली एकमात्र स्वतंत्र राज्य था। कृष्ण देव राय के शासन में आने के बाद उन्होंने अपनी सेना को इस स्तर तक पहुंचाया। 1.50 लाख घुड़सवार सैनिक 88,000 पैदल सैनिक 20,000 रथ 64,000 हाथी और 1.50 लाख घोड़े 15,000 तोप इत्यादि। वे महान प्रतापी, शक्तिशाली, शांतिस्थापक, सर्वप्रिय, सहिष्णु और व्यवहारकुशल शासक थे। उन्होंने विद्रोहियों को दबाया, ओडिशा पर आक्रमण किया और पुरे भारत के भूभाग पर अपना अधिकार स्थापित किया। सोलहवीं सदी में यूरोप से पुर्तगाली भी पश्चिमी किनारे पर आकर डेरा डाल चुके थे। उन्होंने कृष्णदेव राय से व्यापारिक संधि करने की विनती की जिससे विजयनगर राज्य की श्रीवृद्धि हो सकती थी लेकिन कृष्ण देव राय ने मना कर दिया और पुर्तगालीयों सहित 42 विदेशी शक्तियों को भारत से खदेड़ कर बाहर किया। तुलुव वंश का अंतिम राजा सदाशिव परंपरा को कायम न रख सका। सिंहासन पर रहते हुए भी उसका सारा कार्य रामराय द्वारा संपादित होता था। सदाशिव के बाद रामराय ही विजयनगर राज्य का स्वामी हुआ और इसे चौथे वंश अरवीदु का प्रथम सम्राट् मानते हैं। रामराय का जीवन कठिनाइयों से भरा पड़ा था। शताब्दियों से दक्षिण भारत के हिंदू नरेश इस्लाम का विरोध करते रहे, अतएव बहमनी सुल्तानों से शत्रुता बढ़ती ही गई। मुसलमानी सेना के पास अच्छी तोपें तथा हथियार थे, इसलिए विजयनगर राज्य के सैनिक इस्लामी बढ़ाव के सामने झुक गए। विजयनगर शासकों द्वारा नियुक्त मुसलमान सेनापतियों ने राजा को घेरवा दिया अतएव सन् १५६५ ई. में तलिकोट के युद्ध में रामराय मारा गया। मुसलमानी सेना ने विजयनगर को नष्ट कर दिया जिससे दक्षिण भारत में भारतीय संस्कृति की क्षति हो गई। अरवीदु के निर्बल शासकों में भी वेकंटपतिदेव का नाम धिशेषतया उल्लेखनीय है। उसने नायकों को दबाने का प्रयास किया था। बहमनी तथा मुगल सम्राट् में पारस्परिक युद्ध होने के कारण वह मुग़ल सल्तनत के आक्रमण से मुक्त हो गया था। इसके शासनकाल की मुख्य घटनाओं में पुर्तगालियों से हुई व्यापारिक संधि थी। शासक की सहिष्णुता के कारण विदेशियों का स्वागत किया गया और ईसाई पादरी कुछ सीमा तक धर्म का प्रचार भी करने लगे। वेंकट के उत्तराधिकारी निर्बल थे। शासक के रूप में वे विफल रहे और नायकों का प्रभुत्व बढ़ जाने से विजयनगर राज्य का अस्तित्व मिट गया।
हिंदू संस्कृति के इतिहास में विजयनगर राज्य का महत्वपूर्ण स्थान रहा। विजयनगर की सेना में मुसलमान सैनिक तथा सेनापति कार्य करते रहे, परंतु इससे विजयनगर के मूल उद्देश्य में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। विजयनगर राज्य मेंसायण द्वारा वैदिक साहित्य की टीका तथा विशाल मंदिरों का निर्माण दो ऐसे ऐतिहासिक स्मारक हैं जो आज भी उसका नाम अमर बनाए हैं।
विजयनगर के शासक स्वयं शासनप्रबंध का संचालन करते थे। केंद्रीय मंत्रिमंडल की समस्त मंत्रणा को राजा स्वीकार नहीं करता था और सुप्रबंध के लिए योग्य राजकुमार से सहयोग लेता था। प्राचीन भारतीय प्रणाली पर शासन की नीति निर्भर थी। सुदूर दक्षिण में सामंत वर्तमान थे जो वार्षिक कर दिया करते थे और राजकुमार की निगरानी में सारा कार्य करते थे। प्रजा के संरक्षण के लिए पुलिस विभाग सतर्कता से कार्य करता रहा जिसका सुंदर वर्णन विदेशी लेखकों ने किया है।
विजयनगर के शासकगण राज्य के सात अंगों में कोष को ही प्रधान समझते थे। उन्होंने भूमि की पैमाइश कराई और बंजर तथा सिंचाइवाली भूमि पर पृथक्-पृथक्कर बैठाए। चुंगी, राजकीय भेंट, आर्थिक दंड तथा आयात पर निर्धारित कर उनके अन्य आय के साधन थे। विजयनगर एक युद्ध राज्य था अतएव आय का दो भाग सेना में व्यय किया जाता, तीसरा अंश संचित कोष के रूप में सुरक्षित रहता और चौथा भाग दान एवं महल संबंधी कार्यों में व्यय किया जाता था।
भारतीय साहित्य के इतिहास में विजयनगर राज्य का उल्लेख अमर है। तुंगभद्रा की घाटी में ब्राह्मण, जैन तथा शैव धर्म प्रचारकों ने कन्नड भाषा को अपनाया जिसमेंरामायण, महाभारत तथा भागवत की रचना की गई। इसी युग में कुमार व्यास का आविर्भाव हुआ। इसके अतिरिक्त तेलुगू भाषा के कवियों को बुक्क ने भूमि दान में दी। कृष्णदेव राय का दरबार कुशल कविगण द्वारा सुशोभित किया गया था। संस्कृत साहित्य की तो वर्णनातीत श्रीवृद्धि हुई। विद्यारण्य बहुमुख प्रतिभा के पंडित थे। विजयनगर राज्य के प्रसिद्ध मंत्री माधव ने मीमांसा एवं धर्मशास्त्र संबंधी क्रमश: जैमिनीय न्यायमाला तथा पराशरमाधव नामक ग्रंथों की रचना की थी उसी के भ्राता सायण ने वैदिक मार्गप्रवर्तक हरिहर द्वितीय के शासन काल में हिंदू संस्कृति के आदि ग्रंथ वेद पर भाष्य लिखा जिसकी सहायता से आज हम वेदों का अर्थ समझते हैं। विजयनगर के राजाओं के समय में संस्कृत साहित्य में अमूल्य पुस्तकें लिखी गईं।
बौद्ध, जैन तथा ब्राह्मण मतों का प्रसार दक्षिण भारत में हो चुका था। विजयनगर के राजाओं ने शैव मत को अपनाया, यद्यपि उनकी सहिष्णुता के कारण वैष्णव आदि अन्य धर्म भी पल्लवित होते रहे। विजयनगर की कला धार्मिक प्रवृत्तियों के कारण जटिल हो गई। मंदिरों के विशाल गोपुरम् तथा सुंदर, खचित स्तंभयुक्त मंडप इस युग की विशेषता हैं। विजयनगर शैली की वास्तुकला के नमूने उसके मंदिरों में आज भी शासकों की कीर्ति का गान कर रहे हैं।
स्थापत्य कला
इस साम्राज्य के विरासत के तौर पर हमें संपूर्ण दक्षिण भारत में स्मारक मिलते हैं जिनमें सबसे प्रसिद्ध हम्पी के हैं। दक्षिण भारत में प्रचलित मंदिर निर्माण की अनेक शैलियाँ इस साम्राज्य ने संकलित कीं और विजयनगरीय स्थापत्य कला प्रदान की। दक्षिण भारत के विभिन्न सम्प्रदाय तथा भाषाओं के घुलने-मिलने के कारण इस नई प्रकार की मंदिर निर्माण की वास्तुकला को प्रेरणा मिली। स्थानीय कणाश्म पत्थर का प्रयोग करके पहले दक्कन तथा उसके पश्चात् द्रविड़ स्थापत्य शैली में मंदिरों का निर्माण हुआ। धर्मनिर्पेक्ष शाही स्मारकों में उत्तरी दक्कन सल्तनत की स्थापत्य कला की झलक देखने को मिलती है।
उत्पत्ति
इस साम्राज्य की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न दंतकथाएँ भी प्रचलित हैं। इनमें से सबसे अधिक विश्वसनीय यही है कि संगम के पुत्र हरिहर तथा बुक्का ने हम्पी हस्तिनावती राज्य की नींव डाली और विजयनगर को राजधानी बनाकर अपने राज्य का नाम अपने गुरु के नाम पर विजयनगर रखा[1]।
दक्षिण भारत में मुसलमानों का प्रवेश अलाउद्दीन खिल्जी के समय हुआ था। लेकिन अलाउद्दीन उन राज्यों का हराकर उनसे वार्षिक कर लेने तक ही सीमित रहा। मुहम्मद बिन तुगलक ने दक्षिण में साम्राज्य विस्तार के उद्येश्य से कम्पिली पर आक्रमण कर दिया और कम्पिली के दो राज्य मंत्रियों हरिहर तथा बुक्का को बंदी बनाकर दिल्ली ले आया। इन दोनों भाइयों द्वारा इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बाद इन्हें दक्षिण विजय के लिए भेजा गया। माना जाता है कि अपने इस उद्येश्य में असफलता के कारण वे दक्षिण में ही रह गए और विद्यारण्य नामक सन्त के प्रभाव में आकर हिन्दू धर्म को पुनः अपना लिया। इस तरह मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में ही भारत के दक्षिण पश्चिम तट पर विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की गई।
साम्राज्य विस्तार
विजयनगर की स्थापना के साथ ही हरिहर तथा बुक्का के सामने कई कठिनाईयां थीं। वारंगल का शासक कापाया नायक तथा उसका मित्र प्रोलय वेम और वीर बल्लाल तृतीय उसके विरोधी थे। देवगिरि का सूबेदार कुतलुग खाँ भी विजयनगर के स्वतंत्र अस्तित्व को नष्ट करना चाहता था। हरिहर ने सर्वप्रथम बादामी, उदयगिरि तथा गुटी के दुर्गों को सुदृढ़ किया। उसने कृषि की उन्नति पर भी ध्यान दिया जिससे साम्राज्य में समृद्धि आयी। होयसल साम्राट वीर बल्लाल मदुरै के विजय अभियान में लगा हुआ था। इस अवसर का लाभ उठाकर हरिहर ने होयसल साम्राज्य के पूर्वी बाग पर अधिकार कर लिया। बाद में वीर बल्लाल तृतीय मदुरा के सुल्तान द्वारा 1342 में मार डाला गया। बल्लाल के पुत्र तथा उत्तराधिकारी अयोग्य थे। इस मौके को भुनाते हुए हरिहर ने होयसल साम्राज्य पर अधिकार कर लिया। आगे चलकर हरिहर ने कदम्ब के शासक तथा मदुरा के सुल्तान को पराजित करके अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली।
हरिहर के बाद बुक्का सम्राट बना हंलाँकि उसने ऐसी कोई उपाधि धारण नहीं की। उसने तमिलनाडु का राज्य विजयनगर साम्राज्य में मिला लिया। कृष्णा नदी को विजयनगर तथा बहमनी की सीमा मान ली गई। बुक्का के बाद उसका पुत्र हरिहर द्वितीय सत्तासीन हुआ। हरिहर द्वितीय एक महान योद्धा था। उसने अपने भाई के सहयोग से कनारा, मैसूर, त्रिचनापल्ली, कांची, चिंगलपुट आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।
शासकों की सूची
संगम वंश
विजयनगर साम्राज्य के 'हरिहर' और 'बुक्का' ने अपने पिता "संगम" के नाम पर संगम वंश (1336-1485 ई.) की स्थापना की थी। इस वंश में जो राजा हुए, उनके नाम व उनकी शासन अवधी निम्नलिखित हैं-
- हरिहर राय १ 1336-1356
- बुक्क राय १ 1356-1377
- हरिहर राय २ 1377-1404
- विरुपक्ष राय 1404-1405
- बुक्क राय २ 1405-1406
- देव राय १ 1406-1422
- रामचन्द्र राय 1422
- वीर विजय बुक्क राय 1422-1424
- देव राय २ 1424-1446
- मल्लिकार्जुन राय 1446-1465
- विरुपक्ष राय २ 1465-1485
- प्रौढ राय 1485
विजयनगर पर शासन करने वाला यह पहला वंश था. संगम राजवंश के राजाओं की सूची और उनके कार्यों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार हैं:
हरिहर I (1336 ईस्वी -1356 ईस्वी)
यह बुक्का प्रथम के साथ संयुक्त रूप से विजयनगर साम्राज्य का संस्थापक था. यह वीर-हरिहर प्रथम के नाम से भी जाना जाता था. इसने 1336 ईस्वी से 1356 ईस्वी तक शासन किया.
बुक्का प्रथम(1356 ईस्वी 1377 ईस्वी)
यह हरिहर प्रथम के बाद सिंहासन पर बैठा था और लगभग 20 वर्षों तक शासन किया. उसने अपने शासन काल में 1360 ईस्वी में अर्काट के शम्भुवार्य और कोंडविन्दु के रेड्डीयों को पराजित करके अपने साम्राज्य का विस्तार किया. उसने मदुरै के सुल्तान को भी हराया. इस तरह से उसने अपने साम्राज्य को विस्तृत करते हुए दक्षिण में रामेश्वरम तक विस्तृत किया.
बुक्का के शासनकाल के दौरान, साम्राज्य की राजधानी विजयनगर में स्थापित की गयी जोकि पिछली राजधानी अनेगोंदी से ज्यादा सुरक्षित और सामरिक दृष्टि से मजबूत थी.
हरिहर राय द्वितीय(1377 ईस्वी -1404 ईस्वी)
बुक्का की मृत्यु के पश्चात हरिहर राय द्वितीय विजयनगर का अगला शासक बना. उसने पूर्व के शासकों के विस्तार नीति को जारी रखा और बहुत से बंदरगाह जैसे चौल, गोवा और दाभोल के ऊपर अपना नियंत्रण स्थापित किया. इसके अलावा उसने कोंडविन्दु के रेड्डीयों से श्रीशैलम और अदंकी क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की. उसने वेदमार्ग प्रवर्तक और वैदिक मार्गस्थापनाचार्य की उपाधि प्राप्त की.
वीरूपाक्ष राय (1404 ईस्वी -1405 ईस्वी)
इसने सिर्फ एक साल तक ही शासन कार्य किया और अंततः अपने पुत्र के द्वारा मार डाला गया. इसके पश्चात बुक्का प्रथम शासक बना. इसके पश्चात बुक्का राय द्वितीय शासक बना. इसके पश्चात देव राय प्रथम विजयनगर का अगला शासक बना.
देवराय प्रथम (1406 ईस्वी -1422 ईस्वी)
यह अपने शासन काल के दौरान हमेशा गुलबर्गा के बहमनी सुल्तान, कोंद्बिंदु के रेड्डीयों और तेलंगाना के वेलम्मों से युद्ध में लिप्त रहा. वह अपने क्षेत्रों पर नियंत्रण बनाये रखने में अत्यंत सफल एवं सक्षम शासक था.
वीर विजय बुक्का राय (1422 ईस्वी -1424 ईस्वी)
देव राय का शासन काल अत्यंत संक्षिप्त समय के लिए था. 1422 ईस्वी में रामचंद्र राय ने उसके पश्चात विजयानागर में शासन किया. इसके पश्चात्त वीर विजय बुक्का राय शासक बना. वीर विजय बुक्का राय के पश्चात देवराय द्वितीय शासक बना.
देवराय द्वितीय (1424 ईस्वी -1446 ईस्वी)
वह एक सफल राजा था. इसने बहमनी सुल्तान अहमदशाह प्रथम के आक्रमण को नाकाम कर दिया और 1432 ईस्वी में कोंडविन्दु पर विजय प्राप्त की. इसके अलवा उसने ओड़िसा के गजपति के ऊपर भी अपना नियंत्रण स्थापित किया. इसने लंका पर भी आक्रमण किया था और इस क्षेत्र के लोगो से भावभीनी श्रद्धांजलि भी प्राप्त की थी. वह कालीकट के शासक से भी श्रद्धांजलि प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की थी.
प्रौढ़देवराय (1485ईस्वी)
देव राय द्वितीय के पश्चात मल्लिकार्जुन राय, वीरूपक्ष राय द्वितीय और प्रौढ़देवराय शासक बने. ये सभी कमजोर शासक थे. संगम वंश का अंतिम राजा प्रौढ़देव राय था. यह 1485 ईस्वी में अपने सक्षम कमांडर सलुव नरसिंह देव राय द्वारा राजधानी से बाहर निकल दिया गया.
सलुव वंश
- सलुव नरसिंह देव राय 1485-1491
- थिम्म भूपाल 1491
- नरसिंह राय २ 1491-1505
विजयनगर साम्राज्य: सलुव राजवंश
यह विजयनगर साम्राज्य पर राज करने वाला दूसरा राजवंश था. सलुव राजवंश के राजाओं और उनके बारे संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है:
सलुव नरसिंह देवराय (1485 ईस्वी-1491ईस्वी)
इसने अपने साम्राज्य का विस्तार करने की कोशिश की, लेकिन इसे विद्रोही सरदारों से कड़े विरोध का सामना करना पड़ा. इसने मंगलौर, होन्नावर, बकनुर और भटकल की कन्नड़ देश के पश्चिमी बंदरगाहों पर विजय प्राप्त की, लेकिन गजपति कपिलेन्द्र के हाथों उदयगिरी को खो दिया. इसकी 1491 में मृत्यु हो गई.
थिम्मा भूपाल (1491ईस्वी)
यह अपने पिता नरसिंह देव राय के पश्चात शासक बना था. इसके शासन काल में इसके सेना कमांडर नें राजनीतिक अशांति का फायदा उठाया और उसकी हत्या कर दी थी. इसके पश्चात इसका छोटा भाई नरसिंह राय द्वितीय शासक बना.
नरसिंह राय द्वितीय (1491ईस्वी -1505ईस्वी)
एक राजा होने के बावजूद यह एक कठपुतली शासक बना रहा. अपने मृत्यु के अंतिम समय 1505 ईस्वी तक यह अपने कमांडर नरसा नायक के नियन्त्रण में बना रहा. यह नरसा नायक के पुत्र के द्वारा मार डाला गया. इसकी मृत्यु के पश्चात वीर नरसिंह नया राजा बना. वीरनरसिंह राय नरसा नायक की मृत्यु के बाद साम्राज्य के रीजेंट के रूप में काम कर रहा था. इस प्रकार सलुव राजवंश का अंत हो गया.
सलुव नरसिंह देवराय (1485 ईस्वी-1491ईस्वी)
इसने अपने साम्राज्य का विस्तार करने की कोशिश की, लेकिन इसे विद्रोही सरदारों से कड़े विरोध का सामना करना पड़ा. इसने मंगलौर, होन्नावर, बकनुर और भटकल की कन्नड़ देश के पश्चिमी बंदरगाहों पर विजय प्राप्त की, लेकिन गजपति कपिलेन्द्र के हाथों उदयगिरी को खो दिया. इसकी 1491 में मृत्यु हो गई.
थिम्मा भूपाल (1491ईस्वी)
यह अपने पिता नरसिंह देव राय के पश्चात शासक बना था. इसके शासन काल में इसके सेना कमांडर नें राजनीतिक अशांति का फायदा उठाया और उसकी हत्या कर दी थी. इसके पश्चात इसका छोटा भाई नरसिंह राय द्वितीय शासक बना.
नरसिंह राय द्वितीय (1491ईस्वी -1505ईस्वी)
एक राजा होने के बावजूद यह एक कठपुतली शासक बना रहा. अपने मृत्यु के अंतिम समय 1505 ईस्वी तक यह अपने कमांडर नरसा नायक के नियन्त्रण में बना रहा. यह नरसा नायक के पुत्र के द्वारा मार डाला गया. इसकी मृत्यु के पश्चात वीर नरसिंह नया राजा बना. वीरनरसिंह राय नरसा नायक की मृत्यु के बाद साम्राज्य के रीजेंट के रूप में काम कर रहा था. इस प्रकार सलुव राजवंश का अंत हो गया.
तुलुव वंश
- वीरनरसिंह राय 1503-1509
- कृष्ण देव राय 1509-1529
- अच्युत देव राय 1529-1542
- सदाशिव राय 1542-1570
विजयनगर साम्राज्य: तुलुवा वंश
यह विजयनगर साम्राज्य का तीसरा वंश था I इस साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध शासक कृष्ण देव राय इसी वंश से संबंधित था I तुलुवा वंश के कुछ प्रसिद्ध शासकों की सूची इस प्रकार है:
तुलुवा नरसाया नायक: (1493-1503 ईसवी)
यह विजयनगर सेना में सलुवा नरसिम्हा देव राय के शासन में सेनापति के पद पर था शासक की मृत्यु के बाद वह शासक के पद पर आसीन हुआ I उसने साम्राज्य को बहमानी शासकों, गजपति, एवं अविश्वसनीय लोगों से सुरक्षित रखा I
वीर नरसिम्हा राय: (1503-1509 ईसवी)
यह पूर्ववर्ती शासक की मृत्यु के बाद शासक बना इसने अपना संपूर्ण शासन काल विद्रोहियों से रक्षा में ही व्यतीत कर दिया I
कृष्ण देव राय: (1509-1529 ईसवी)
यह विजयनगर साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध शासक था I इसने मूरु रारया गॅंड, कन्नड़ राज्य रामा रमना एवं आंध्र भोज की उपाधि धारण की I इसके पिता तुलुवा नरसया नायक तथा माता नगला देवी थी I इसके शासन के समय साम्राज्य अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचा I
अच्युत राय: ( 1529- 1542 ईसवी)
इसने कृष्ण देव राय के बाद सत्ता संभाली I यह कृष्ण देव राय का छोटा भाई था I जब इसकी मृत्यु हुई तब इसका भतीजा, जो उस समय बच्चा था वह शासक बना I आलिया रामा राय, कृष्णा देव राय का दामाद था वह इस साम्राज्य का एक सलाहकार बना I
सदाशिव राय: (1542-1570 ईसवी)
यह आलिया रामा राय की हाथों की कठपुतली था I इसके काल में शासन की असली बागडोर रामा राय के पास थी I
तुलुवा नरसाया नायक: (1493-1503 ईसवी)
यह विजयनगर सेना में सलुवा नरसिम्हा देव राय के शासन में सेनापति के पद पर था शासक की मृत्यु के बाद वह शासक के पद पर आसीन हुआ I उसने साम्राज्य को बहमानी शासकों, गजपति, एवं अविश्वसनीय लोगों से सुरक्षित रखा I
वीर नरसिम्हा राय: (1503-1509 ईसवी)
यह पूर्ववर्ती शासक की मृत्यु के बाद शासक बना इसने अपना संपूर्ण शासन काल विद्रोहियों से रक्षा में ही व्यतीत कर दिया I
कृष्ण देव राय: (1509-1529 ईसवी)
यह विजयनगर साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध शासक था I इसने मूरु रारया गॅंड, कन्नड़ राज्य रामा रमना एवं आंध्र भोज की उपाधि धारण की I इसके पिता तुलुवा नरसया नायक तथा माता नगला देवी थी I इसके शासन के समय साम्राज्य अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचा I
अच्युत राय: ( 1529- 1542 ईसवी)
इसने कृष्ण देव राय के बाद सत्ता संभाली I यह कृष्ण देव राय का छोटा भाई था I जब इसकी मृत्यु हुई तब इसका भतीजा, जो उस समय बच्चा था वह शासक बना I आलिया रामा राय, कृष्णा देव राय का दामाद था वह इस साम्राज्य का एक सलाहकार बना I
सदाशिव राय: (1542-1570 ईसवी)
यह आलिया रामा राय की हाथों की कठपुतली था I इसके काल में शासन की असली बागडोर रामा राय के पास थी I
अरविदु वंश
- अलिय राम राय 1542-1565
- तिरुमल देव राय 1565-1572
- श्रीरंग १ 1572-1586
- वेंकट २ 1586-1614
- श्रीरंग २ 1614-1614
- रामदेव अरविदु 1617-1632
- वेंकट ३ 1632-1642
- श्रीरंग ३ 1642-1646
अराविदु राजवंश हिन्दू धर्म का अंतिम राजवंश था जिन्होंने दक्षिण भारत के विजयनगर पर राज किया था। इस राजवंश स्थापक त्रिमूल देव राय थे ,जो कि राम राय के भाई थे। राम राय जो कि पिछले राजवंश के अंतिम शासक थे। इनकी मृत्यु राक्षसी तांगड़ी में हुई थी। अराविदु राजवंश के परिवार के लोग अपना उपनाम अत्रेया रखते थे।
संदर्भ
- ↑ citebook | title=प्रान्तीय राज्य | page=171|
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