Friday, 8 March 2019

मगध साम्राज्य का इतिहास

मगध साम्राज्य का इतिहास

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मगध का उल्लेख सर्वप्रथम अथर्ववेद में मिलता है ऋग्वेद में यधपि मगध का उल्लेख नही मिलता, तथापि कीकट (किराट) नामक जाति व इसके शासक प्रमगंद का उल्लेख मिलता है इसकी पहचान मगध से की गयी है। वैदिक साहित्य से मगध के इतिहास की स्पष्ट जानकारी नही मिलती। इसमें प्रमगंद के अतिरिक्त मगध के अन्य किसी शासक का उल्लेख नही हुआ। मगध के प्राचीन इतिहास की रूपरेखा महाभारत तथा पुराणों में मिलती है। इन ग्रंथों के अनुसार मगध के सबसे प्राचीन राजवंश का संस्थापक ब्रह्द्रथ था। वह जरासंध का पिता व वसु चैध- उपरिचर का पुत्र था। मगध की आरंभिक राजधानी वसुमती या गिरीब्रज की स्थापना का श्रेय वसु को ही था। ब्रह्द्रथ का पुत्र जरासंध एक पराक्रमी शासक था, जिसने अनेक राजाओं को पराजित किया। अंततोगत्वा उसे श्रीकृष्ण के निर्देश पर भीम के हाथों पराजित होकर मरना पड़ा। रिपुंजय इस वंश का अंतिम शासक था, वह एक कमजोर व अयोग्य राजा था। अत उसके मंत्री पुलिक ने उसकी हत्या करवाकर अपने पुत्र को गद्दी पर बैठाया। इसी के साथ मगध में एक नए राजवंश का उदय हुआ।

हर्यक वंश (पितृहंता वंश)

ब्रह्द्रथ वंश के पश्चात् मगध में जो नया राजवंश सत्ता में आया, वह हर्यक- वंश के नाम से विख्यात हुआ। बौद्ध एवम जैनग्रंथों में इस वंश को हर्यक- वंश कहा गया है। इस वंश के संस्थापक बिम्बिसार थे। इस वंश का प्रथम महान शासक बिम्बिसार हुआ, जिसने मगध साम्राज्य की नींव रखी थी।

बिम्बिसार (544 ई. पू. से 492 ई. पू.)

जैन साहित्य में इसे श्रेणिक कहा गया है। बिम्बिसार मगध के पहले वंश हर्यक वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था। उसकी राजधानी गिरीव्रज (राजगृह) थी। बिम्बिसार ने विजयों तथा वैवाहिक संबंधों द्वारा अपने वंश का विस्तार किया। बिम्बिसार ने अपने राज्यवैध जीवक को अवंती नरेश चंडप्रधोत की पीलिया नामक बिमारी को ठीक करने के लिए भेजा था, जिससे मैत्री सम्बन्ध स्थापित हुए। बिम्बिसार ने अंग देश के शासक ब्रह्मदत्त को पराजित कर उसे अपने राज्य में मिला लिया। यह बौद्ध तथा जैन दोनों मतों का पोषक था, इसने राजगृह नामक नवीन नगर की स्थापना की। इसकी ह्त्या इसके पुत्र अजातशत्रु ने कर दी थी।

अजातशत्रु (492 ई. पू. से 460 ई. पू.)

अजातशत्रु का कौशल नरेश प्रसेनजीत से युद्ध हुआ। पहले तो प्रसेनजीत की हार हुई, परन्तु बाद में दोनों में समझौता हो गया। प्रसेनजीत ने अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु से कर दिया। अजातशत्रु ने लिच्छवी गणराज्य की राजधानी वैशाली को जीतकर मगध साम्राज्य का हिस्सा बना लिया था। इस प्रकार काशी और वैशाली को मिला लेने के बाद मगध का साम्राज्य और विस्तृत हो गया। यह बौद्ध तथा जैन दोनों मतों का पोषक था। उसके शासनकाल के 8 वें वर्ष में बुद्ध को महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ था। राजगृह में स्तूप का निर्माण करवाया था। इसके शासनकाल में राजगृह की सप्तपर्णी गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया। इसकी ह्त्या इसके पुत्र उदायिन ने कर दी थी।
मगध साम्राज्य का अंतिम शासक उदयन था

शिशुनाग वंश(412ई.पू.-- 343ई.पू.)

इस वंश का संस्थापक शिशुनाग था, यह बनारस के राजा का गवर्नर था। शिशु अवस्था में माता पिता ने उनका परित्याग कर दिया था। उसकी रक्षा एक नाग ने की थी इसलिए ये शिशुनाग के नाम से प्रसिद्ध हुए। शिशुनाग की सबसे बड़ी सफलता अवन्ती राज्य को जीतकर उसे मगध साम्राज्य में मिलाना था. इसने अपनी राजधानी वैशाली में स्थानांतरित की थी। महानंदिन शिशुनाग वंश का अंतिम शासक था, जिसको समाप्त करके महापदमनंद ने शिशुनाग वंश को समाप्त कर एक नए राजवंश की स्थापना की जो नन्द वंश के नाम से जाना गया।

नन्द वंश

शिशुनाग वंश के बाद मगध का राज्य नन्द वंश के हाथों में आ गया। नन्द वंश में कुल 9 राजा हुए और इसी कारण उन्हें नवनंद कहा जाता है। महाबोधि वंश में उनके आम इस प्रकार मिलते हैं।
  1. उग्रसेन
  2. पण्डुक
  3. पण्डुगति
  4. भूतपाल
  5. गोविषानक
  6. दशसिद्धक
  7. कैवर्त
  8. घनानंद।

महापदमनंद

यह गैर क्षत्रिय (शुद्र) शासकों में प्रथम था, जो पूरे मगध साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली शासक था। इसने प्रथम बार कलिंग की विजय की तथा वाहन एक नहर भी खुदवाई, जिसका उल्लेख बाद में कलिंग शासक खारवेल ने अपनी हाथी गुम्फा अभिलेख में किया है। इसी अभिलेख से पता चलता है कि महापदमनंद कलिंग से जैन प्रतिमा उठा लाया था। पुराणों में इसे एकक्षत्र व एकराट शासक कहा गया है और यह निसंदेह उत्तर भारत का प्रथम महान ऐतिहासिक सम्राट था।

नंद वंश का अंतिम शासक: घनानंद

यह नन्द वंश का अंतिम सम्राट था। जनता पर अत्यधिक कर लगाने के कारण जनता इससे असंतुष्ट थी। इसका लाभ चन्द्रगुप्त मौर्य ने उठाकर, चाणक्य की मदद से इसे मार कर मौर्य वंश की स्थापना की थी। नन्द शासक जैन मत के पोषक थे। घनानंद के जैन अमात्य शकटाल तथा स्थूलभद्र थे। उपवर्ष, वररूचि, कात्यायन जैसे विद्वान भी नन्द काल में ही उत्पन्न हुए थे।

मौर्य वंश

मगध में नंद वंश के बाद जो प्रसिद्ध वंश शासन किया मौर्य वंश था जिसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य अपने राजगुरु चाणक्य अर्थात कौटिल्य की सहायता से 322 ईसा पूर्व में कि

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