झुन्झुनू का इतिहास

झुन्झुनू | |
— शहर — | |
निर्देशांक: (निर्देशांक ढूँढें) | |
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |
देश | ![]() |
राज्य | राजस्थान |
महापौर | |
संतोष अहलावत | |
जनसंख्या | 118,473 (2011 के अनुसार ) |
इतिहासकारों के अनुसार झुंझुनू को कब और किसने बसाया, इसका स्पष्ट विवरण नही मिलता है| उनके अनुसार पांचवी-छठी शताब्दी में गुर्जर काल में झुंझुनू बसाया गया था| आठवीं शताब्दी में चौहान शासकों के काल का अध्ययन करते हैं तो उसमे झुंझुनू के अस्तित्व का उल्लेख मिलता है| डॉ. दशरथ शर्मा ने तेहरवी शताब्दी के कस्बों की जो सूची दी है उसमे झुंझुनू का भी नाम है| इसी प्रकार अनंत और वागड राज्यों के उल्लेख में भी झुंझुनू का अस्तित्व कायम था|
सुलतान फिरोज़ तुगलक (ई. सन १३३८-१३५१) के बाद कायमखानी वंशज आये| कहते हैं, कायम खान के बेटे मुहम्मद खान ने झुंझुनू में अपना राज्य कायम किया, इसके बाद लगातार यह क्षेत्र कयामखानियों के अधिपत्य में रहा| एक उल्लेख यह भी मिलता है की सन १४५१-१४८८ के बीच झुन्झा नमक जाट ने झुंझुनू को बसाया|
जुझारसिंह नेहरा
जुझारसिंह नेहरा (1664 – 1730) राजस्थान के बड़े मशहूर योद्धा हुए हैं, उन्हीं के नाम से झुंझुनू जैसा नगर प्रसिद्द है।
नेहरा जाटों का इतिहास
नेहरा भारत और पाकिस्तान में जाटों का एक गोत्र है। ये राजस्थान, दिल्ली, हरयाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पाकिस्तान में पाए जाते हैं। नेहरा की उत्पत्ति वैवस्वत मनु के पुत्र नरिष्यंत (नरहरी) से मानी जाती है। पहले ये पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में नेहरा पर्वत पर निवास करते थे। वहां से चल कर राजस्थान के जांगलदेश भू-भाग में बसे और झुंझुनू में नेहरा पहाड़ पर आकर निवास करने लगे।
राजस्थान में नेहरा जाटों का तकरीबन २०० वर्ग मील भूमि पर किसी समय शासन रहा था। उनके ही नाम पर झुंझुनू के निकट पर्वत आज भी नेहरा पहाड़ कहलाता है। दूसरा पहाड़ जो मौरा (मौड़ा) है, मौर्य लोगों के नाम से मशहूर है। नेहरा लोगों में सरदार झुन्झा अथवा जुझारसिंह नेहरा बड़े मशहूर योद्धा हुए हैं, उन्हीं के नाम से झुंझुनूजैसा नगर प्रसिद्द है।
पंद्रहवीं सदी में नेहरा लोगों का नरहड़ में शासन था। वहां पर उनका एक किला भी था। उससे १६ मील पश्चिम में नेहरा पहाड़ के नीचे नाहरपुर में उनके दूसरे दल का राज्य था। सोलहवीं सदी के अंतिम भाग में और सत्रहवीं सदी के प्रारंभ में नेहरा लोगों का मुसलमान शासकों से युद्ध हुआ। अंत में नेहरा लोगों ने मुसलमानों से संधि करली.
नेहरा लोगों के प्रसिद्द सरदार जुझारसिंह नेहरा का जन्म संवत १७२१ विक्रमी श्रावण महीने में हुआ था। उनके पिता नवाब के यहाँ फौज के सरदार यानि फौजदार थे। युवा होने पर सरदार जुझार सिंह नवाब की सेना में जनरल बन गए। उनके दिल में यह बात पैदा हो गयी कि भारत में जाट साम्राज्य स्थापित हो। जुझार सिंह ने पंजाब, भरतपुर, ब्रज के जाट राजाओं और गोकुला के बलिदान की चर्चा सुन रखी थी। उनकी हार्दिक इच्छा थी कि नवाबशाही के खिलाफ जाट लोग मिल कर बगावत करें।
उन्हीं दिनों सरदार जुझार सिंह की मुलाकात एक राजपूत से हुई। वह किसी रिश्ते के जरिये नवाब के यहाँ नौकर हो गया। उसका नाम शार्दुल सिंह था। दोनों का सौदा तय हो गया। शार्दुल सिंह ने वचन दिया कि इधर से नवाबशाही के नष्ट करने पर हम तुम्हें (सरदार जुझार सिंह को) अपना सरदार मान लेंगे. अवसर पाकर सरदार जुझार सिंह ने झुंझुनू और नरहड़ के नवाबों को परास्त कर दिया और बाकि मुसलमानों को भगा दिया।
कुंवर पन्ने सिंह द्वारा लिखित 'रणकेसरी जुझार सिंह' नमक पुस्तक में अंकित है कि सरदार जुझार सिंह को दरबार करके सरदार बनाया गया। सरदार जुझार सिंह का तिलक करने के बाद एकांत में पाकर विश्वास घात कर शेखावतों ने सरदार जुझार सिंह को धोखे से मार डाला। इस घृणित कृत्य का समाचार ज्यों ही नगर में फैला हाहाकार मच गया। जाट सेनाएं बिगड़ गयी। फिर भी कुछ लोग विपक्षियों द्वारा मिला लिए गए। कहा जाता है कि उस समय चारण ने शार्दुल सिंह के पास आकर कहा था -
- सादे लीन्हो झूंझणूं, लीनो अमर पटै
- बेटे पोते पड़ौते, पीढी सात लटै
अर्थात - सादुल्लेखान से इस राज्य को झून्झा (जुझार सिंह) ने लिया था, वह तो अमर हो गया। अब इसमें तेरे वंशज सात पीढी तक राज करेंगे।
जुझार अपनी जाती के लिए शहीद हो गया। वह संसार में नहीं रहे, किन्तु उनकी कीर्ति आज तक गाई जाती है। झुंझुनू शहर का नाम जुझार सिंह के नाम पर झुन्झुनू पड़ा है।
शेखावतों का जाटों के साथ समझोता
शेखावतों ने जाट-क्षत्रियों के विद्रोह को दबाने के लिए तथा उन्हें प्रसन्न रखने के लिए निम्नलिखित आज्ञायेँ जारी की गयी -
- लगान की रकम उस गाँव के जाट मुखिया की राय से ली जाया करेगी।
- जमीन की पैमयश गाँव के लम्बरदार किया करेंगे।
- गोचर भूमि के ऊपर कोई कर नहीं होगा।
- जितनी भूमि पर चारे के लिए गुवार बोई जावेगी उस पर कोई कर नहीं होगा।
- गाँव में चोरी की हुई खोज का खर्चा तथा राज के अधिकारियों के गाँव में आने पर उन पर किया गया खर्च गाँव के लगान में से काट दिया जावेगा. जो नजर राज के ठाकुरों को दी जायेगी वह लगान में वाजिब होगी।
- जो जमीन गाँव के बच्चों को पढ़ाने वाले ब्राहमणों को दो जायेगी उसका कोई लगान नहीं होगा। जमीन दान करने का हक़ गाँव के मुखिया को होगा।
- किसी कारण से कोई लड़की अपने मायके (पीहर) में रहेगी तो उस जमीन पर कोई लगान न होगा, जिसे लड़की अपने लिए जोतेगी.
- गाँव का मुखिया किसी काम से बुलाया जायेगा तो उसका खर्च राज देगा।
- गाँव के मुखिया को जोतने के लिए जमीन मुफ्त दी जायेगी. सारे गाँव का जो लगान होगा उसका दसवां भाग दिया जायेगा.
- मुखिया वही माना जायेगा जिसे गाँव के लोग चाहेंगे. यदि सरदार गाँव में पधारेंगे तो उन के खान=पान व स्वागत का कुल खर्च लगान में से काट दिया जायेगा.
- गाँव के टहलकर (कमीण) लोगों को जमीन मुफ्त दी जायेगी.
- जितनी भूमि पर आबादी होगी, उसका कोई लगान न होगा।
- इस खानदान में पैदा होने वाले सभी उत्तराधिकारी इन नियमों का पालन करेंगे।
- किसी भी निर्णय में मुखिया और गाँव का ठाकुर की बात को सर्वोपरि माना जायेगा !
कुछ दिनों तक इनमें से कुछ नियम आंशिक रूप से अनेक ठिकानों द्वारा ज्यों-के-त्यों अथवा कुछ हेर-फेर के साथ मने जाते रहे। कुछ ने एक प्रकार से कटाई इन नियमों को मेट दिया।
झुंझुनू का मुसलमान सरदार जिसे कि सरदार जुझार सिंह ने परास्त किया था, सादुल्ला नाम से मशहूर था। झुंझुनू किस समय सादुल्लाखान से जुझार सिंह ने छीना इस बात का वर्णन निम्न काव्य में मिलता है।
- सत्रह सौ सत्यासी, आगण मास उदार
- सादे लीन्हो झूंझणूं, सुदी आठें शनिवार
अर्थात - संवत १७८७ में अघन मास के सुदी पक्ष में शनिवार के दिन झुंझुनू को सादुल्लाखान से जुझार सिंह ने छीना.
समझोते का पालन नहीं
सरदार जुझार सिंह के बाद ज्यों-ज्यों समय बीतता गया उनकी जाट जाति के लोग पराधीन होते गए। यहाँ तक कि वह अपनी नागरिक स्वाधीनता को भी खो बैठे. एक दिन जो राजा और सरदार थे उनको भी बादमें पक्के मकान बनाने के लिए जमीन खरीदनी पड़ती थी। उन पर बाईजी का लाग लगा और भेंट, न्यौता-कांसा अदि अनेक तरह की बेहूदी लाग और लगा दी गई।
झुंझुनू का अन्तिम नवाब रुहेल खान जो आस-पास के अपने ही वंश के नवाबों से प्रताड़ित था| ऐसे में शार्दूल सिंह शेखावत को यहाँ बुला लिया| रुहेल खान की मृत्यु के बाद विक्रम सम्वत १७८७ में झुंझुनू पर शेखावत राजपूतों का अधिपत्य हो गया जो जागीर अधिग्रहण तक चलता रहा|
शार्दूल सिंह के निधन के बाद उसके पाँच पुत्रों जोरावर सिंह, किशन सिंह, अक्षय सिंह, नवल सिंह और केशरी सिंह के बीच झुंझुनू ठिकाने का विभाजन हुआ| यही पंच्पना कहलाया| इतिहासकारों के अनुसार जोरावर सिंह व् उनके वंशजो के अधीन चौकड़ी, मलसीसर, मंडरेला, डाबडी, चानना, सुल्ताना, ओजटू, बगड़, टाई, गांगियासर, कलि पहाड़ी आदि का शासन था, जबकि किशन सिंह और उनके वंशज खेतड़ी , अलसीसर, हीरवा, अडूका, बदनगढ, सीगडा,तोगडा, बलरिया आदि के शासक रहे| नवल सिंह और उनके वंशजों के अधीन नवलगढ़, मंडवा, महनसर, मुकुंदगढ़, इस्माईलपुर, परसरामपुरा, कोलिंदा आदि की शासन व्यवस्था थी| जबकि केशरी सिंह व् उनके वंशजों का बिसाऊ, सुरजगढ और डून्डलोद में शासन रहा| अक्षय सिंह चूँकि नि:संतान थे, अत: उनका हिस्सा अन्य भाइयों को दे दिया गया|
अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ झुंझुनू जिले में व्याप्त जनाक्रोध कई आंदोलनों के रूप में सामने आया| स्वतंत्रता सैनानी सावलराम के अनुसार इस जनपद में आर्य समाज आन्दोलन, जकात आन्दोलन, जागीरदारों के खिलाफ आन्दोलन प्रजा मंडल आन्दोलन और अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन चले जो कमोबेश एक दुसरे के पूरक थे|
इतिहासकार मोहन सिंह लिखते हैं की जयपुर राज्य की सबसे बड़ी निजामत शेखावाटी थी जिसमा वर्तमान झुंझुनू और सीकर जिले की सम्पूर्ण सीमाएं थी| शेखावाटी निजामत का कार्यालय झुंझुनू में था| सन १८३४ में झुंझुनू एसा मजोर हेनरी फोस्टर ने एक जगह फौज का गठन किया था जिसका नाम शेखावाटी ब्रिगेड रखा गया| झुंझुनू में जिस जगह यह फौज रहती थी वह इलाका आज भी छावनी बाज़ार और छावनी मोहल्ला कहलाता हैं|
आज के समय में झुंझुनू जिले में शिक्षा का स्तर काफी हद तक पहुँच चुका है , जिले से काफी संख्या में आईएएस अधिकारी , आईपीएस अधिकारी , सेना अधिकारी , RAS अधिकारी सेवारत है | जिले में सैनिको को संख्या भी अत्यधिक मात्र में है |
झुंझुनू जिले में अनेक छोटे बड़े दर्शनीय स्थल है जैसे रानी सती का मंदिर, काली पहाड़ी, खेतड़ी महल आदि , साथ ही स्वामी विवेकानंद का संबंध भी खेतड़ी के राजा अजीत सिंह से रहा है जोकि इसी जिले के आधीन तहसील क्षेत्र है | खेतड़ी तहसील में हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड का कॉपर उप्रकम भी कार्यरत है झुंझुनू की सीमा हरियाणा से लगती है पचेरी, शिमला जैसे गाँव हरियाणा के गोद बलावा (कृष्ण नगर) के नजदीक है |
राजस्थान के शेखावाटी इलाके के तीन जिलों चूरू,सीकर और झुंझुनू में हुँ--देश के तमाम बड़े औद्योगिक घराने फिर चाहे वो बिरला हो,मित्तल या बजाज हो,डालमिया या रुइया हो,पोद्दार हो,गोयनका हो,देवरा हो या केडिया सब इसी शेखावटी माटी के लाल है। इसी माटी ने देश को सबसे ज्यादा वीर सपूत दिए जिन्होंने भारतीय फौज में देश के लिए लड़ते हुए वीरगति पाई
चारो तरफ बीहड़ इस माटी ने देश को ना जाने कितने सपूत दिए
आष्चर्यजनक रूप से एक सवाल जो कार में सफर करते बार बार मेरे मन में आ रहा था वो ये की आखिर क्या खास बात है शेखावटी की इस माटी में जो यहां से निकलने वाला हर छोरा देश का नाम दुनिया भर में रोशन करता है,या फौज में जाता है या व्यापारी बनता है
ना यहां पानी की भरमार है,न अनाज की पैदावार ज्यादा है,मिट्टी के टीले रेतीले है--वृक्ष भी फलदार नही है--हवा भी शुष्क है--गर्मी में भीषण गर्मी और ठंड में भीषण ठंड यहां के लोगो की मजबूरी है--पढ़ाई के लिए भी मशक्कत ज्यादा है,दूर दराज गाव के बच्चों को शहर कस्बे तक पढ़ाई के लिए आने में काफी दिक्कतों का सामाना करना पड़ता है
फिर कैसे यहां के बच्चे देश के टॉप इंडस्ट्रलिस्ट,चार्टर्ड अकाउंटेंट, आईएएस,लीडर,बिजनेसमैन, व्यापारी बनते है
लोगो से बात की,हवेलियों में,ढाबो पर रुका--बातचीत में लोगो का गजब का आत्मविश्वास,अभावो के चलते कुछ कर दिखाने की अदम्य इच्छाशक्ति मुझे सहज नज़र आई
कोई बच्चा नौकरी की बात नही कर रहा था,सब या तो व्यापारी, या बड़े ब्यूरोक्रेट,या सीए बनने की बात कर रहे थे
झुंझुनू में एक गाँव है मंडावा --इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मालिक रामनाथजी गोयनका इसी मंडावा गाव से है--मुम्बई के कई बिल्डर,व्यापारी भी इसी गांव से है--बगल में दूसरा गाव है बिसाऊ--मुम्बई की बड़ी चॉइस कम्पनी के पाटोदिया,पोद्दार,अग्रवाल इसी गाव के है--झुंझुनू जिले के एक और कस्बे पिलानी के देश के मशहूर औद्योगिक घराने आदित्य बिड़ला का परिवार बिलॉन्ग करता है--डालमिया भी यही के है--बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी फतेहपुर के है तो मुरली देवरा का परिवार सीकर लक्ष्मणगढ़ से बिलॉन्ग करते है--नवलगढ़ से मोरारका और सेठ अनंदराय पोद्दार परिवार,मलसीसर से लक्ष्मी मित्तल और रामगढ़ से रुइया परिवार की जड़े जुड़ी है--
पता करने पर यर बात पता चली की शेखावटी इलाके के तीनों जिलो में वैसे तो राजपूतो का वर्चस्व रहा है और है लेकिन यहां की वैश्य याने बनिया जिन्हें बड़े मारवाड़ी भी कहते है इन्होंने दुनिया भर में अपने व्यापारिक कला के दम पर राज किया--इनको व्यापारिक कलकुशलता से ज्यादा कुछ कर दिखाने की ललक ने इन्हें विश्वपटल पर पहचान दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई--
जिस सीकर,चूरू और झुंझुनू में सुविधाओं का अभाव हो वहां जहा कुछ पाने को ना हो इस इलाके के नौजवान जब मुम्बई,दिल्ली,कलकत्ता गए तब इनके पास खोने को कुछ नही था--इन्होंने जी भर कर रात दिन मेहनत की और कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए बड़ा एम्पायर खड़ा किया--इनकी एक सबसे बड़ी खासियत ये रही कि ये अपने इलाके शेखावटी लोगो को व्यापार धंधे में जोड़ते गए उनको आगे बढ़ाते गए,नए लोगो की टांग खींचने का काम नही किया बल्कि उन्हें सम्बल देकर मेहनत करना सिखाया और उनका मुकाम बनाया
सीकर,चूरू और झुंझुनू जिलो को खाटू श्यामजी भगवान,सालासर बालाजी,शाकम्बरी माता,जीन माता का पूरा आशीर्वाद रहा---
कहते है ना कि --अगर आप धन को कुआ भरकर भी रखोगे और मेहनत लगन से उसे और भरने के बजाय उसे खाली करते रहोगे तो एक दिन धन से भरा कुआं भी खाली हो जाएगा--
शेखावटी के वीर राजपूतो ने जहा देश के माटी की रक्षा की वही यहां के व्यापारियों ने देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में अपना अमूल्य योगदान दिया
झुंझुनू जिला
भूगोल
झन्झुनू राजस्थान का एक जिला है। यह दिल्ली से २५० किलोमीटर और जयपुर से १८० किलोमीटर दुरी पर स्थित है। यह एक रेगिस्तानी इलाका है। पूर्व से पश्चिम कि सीमा ११० किलोमीटर व उत्तर से दक्षिण की सीमा १०० किलोमीटर है।
झन्झुनू जिला 27.5' से 28.5'उत्तरी अक्षांश तथा 75 से 76 डिग्री पूर्वी देशान्तर के मध्य है। इसका
जनसांख्यिकी
राजस्थान के जनगणना संचालन निदेशालय द्वारा राजस्थान के एक जिले झुनझुनुन (झुनझुनू) की आधिकारिक जनगणना 2011 की जानकारी जारी की गई है। राजस्थान के झुनझुनुन जिले में जनगणना अधिकारियों ने महत्वपूर्ण व्यक्तियों की गणना भी की थी।
2011 में, झुनझुनुन की जनसंख्या 2,137,045 थी, जिसमें पुरुष और महिला क्रमशः 1,095,8 9 6 और 1,041,14 9 थीं। 2001 की जनगणना में, झुनझुनुन की आबादी 1,913,68 9 थी, जिनमें से पुरुष 983,526 थे और शेष 930,163 महिलाएं थीं। झुनझुनुन जिला जनसंख्या कुल महाराष्ट्र आबादी का 3.12 प्रतिशत गठित। 2001 की जनगणना में, झुनझुनुन जिले के लिए यह आंकड़ा महाराष्ट्र आबादी का 3.3 9 प्रतिशत था।
2001 के अनुसार आबादी की तुलना में जनसंख्या में 11.67 प्रतिशत परिवर्तन हुआ था। भारत की पिछली जनगणना में, झुनझुनुन जिले में 1 99 1 की तुलना में इसकी आबादी में 36.90 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
2011 की जनगणना के लिए कुल झुनझुनुन जनसंख्या में से 22.8 9 प्रतिशत जिले के शहरी क्षेत्रों में रहता है। शहरी इलाकों में कुल 48 9, 7 9 7 लोग रहते हैं जिनमें से पुरुष 253,178 हैं और महिलाएं 235, 9 01 हैं। 2011 जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक झुनझुनुन जिले के शहरी क्षेत्र में सेक्स अनुपात 932 है। इसी प्रकार 2011 की जनगणना में झुनझुनुन जिले में बाल लिंग अनुपात 854 था। शहरी क्षेत्र में बाल आबादी (0-6) 65,951 थी जिसमें से पुरुष और महिलाएं 35,579 और 30,372 थीं। झुनझुनुन जिले का यह बाल आबादी कुल शहरी आबादी का 14.05% है। जनगणना 2011 के अनुसार झुनझुनुन जिले में औसत साक्षरता दर 76.53% है जिसमें से पुरुष और महिला क्रमशः 87.3 9% और 65.03% साक्षर हैं। वास्तविक संख्या में शहरी क्षेत्र में 323,811 लोग साक्षर हैं, जिनमें से पुरुष और महिलाएं क्रमशः 190,162 और 133,64 9 हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, झुनझुनुन जिलों की 77.11% आबादी गांवों के ग्रामीण इलाकों में रहती है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाली कुल झुनझुनुन जिला आबादी 1,647, 9 66 है, जिनमें से पुरुष और महिला क्रमशः 842,718 और 805,248 हैं। झुनझुनुन जिले के ग्रामीण इलाकों में लिंग अनुपात प्रति 1000 पुरुष 956 महिलाएं हैं। यदि झुनझुनुन जिले के बाल लिंग अनुपात के आंकड़ों पर विचार किया जाता है, तो प्रति 1000 लड़कों की संख्या 832 लड़कियां हैं। ग्रामीण इलाकों में 0-6 वर्ष की उम्र में बाल आबादी 222,519 है, जिनमें से पुरुष 121,483 थे और महिलाएं 101,036 थीं। झुंजुनुन जिले की कुल ग्रामीण आबादी में बाल आबादी में 14.42% शामिल है। झुनझुनुन जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता दर जनगणना डेटा 2011 के मुकाबले 73.42% है। लिंग के अनुसार पुरुष और महिला साक्षरता क्रमश: 86.75 और 59.77 प्रतिशत थी। कुल मिलाकर, 1,046,549 लोग साक्षर थे जिनमें से पुरुष और महिला क्रमश: 625,672 और 420,877 थीं।
आदर्श स्थल
बगड, बख्तावरपुरा, चिडावा, पिलानी, उदयपूर वाटी , मंडावा , नवलगढ़,तोगड़ा कलां आदि कस्बे इसी में है। झुंझुनूं का नाम लेते ही मन जोश एवं श्रद्धा से भर जाता है। यहां के जर्रे-जर्रे से उठने वाली देशभक्ति की आवाज से जोश तो गांव-गांव में स्थापित शहीदों की प्रतिमाओं को देखकर मन में श्रद्धा का भाव स्वतः ही आ जाता है।झुंझुनूं ही एक ऐसा जिला है जिसने पूरे देेेश में सबसे ज्यादा सैनिक दिए है, सेना में जाने तथा मातृभूमि के लिए शहीद होने का जज्बा जैसा यहां दिखाई देता है, शायद ही कहीं पर दिखाई दे। बात चाहे आजादी से पहले की हो या बाद की, जिले के जाबांज सैनिकों ने दुश्मनों के दांत खट्टे कर अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया। वीरता के बाद झुंझुनूं का धर्म-कर्म के मामले में अलग मुकाम है। यहां जिला मुख्यालय पर स्थित दादी राणीसती का मंदिर तो विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। झुंझुनूं में हजरत कमरुद्दीन शाह की दरगाह एवं चंचलनाथ जी टीला अपने आप में अनूठे हैं। बताया जाता है कि हजरत कमरुद्दीन एवं चंचलनाथ में गहरी दोस्ती थी। दोनों का साम्प्रदायिक सद्भाव भी गजब का था। तभी तो झुंझुनूं में आज भी दोनों जगह होने वाले कार्यक्रमों में गंगा-जमुनी संस्कृति का झलक दिखाई देती है।
यहां पर प्राचीन शिक्षा के केंद्र रहे हैं जिनमें पिलानी का नाम आता है
खेतड़ी महल
खेतड़ी महल झुंझुनू की सबसे खूबसूरत और बेहतरीन वास्तुकला में से एक है। यह झुंझुनू के हवा महल के रूप में भी जाना जाता है।
खेतड़ी महल Khetri Mahal | |
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निर्माण: | 1770 |
वास्तु शैली(याँ): | शेखावाटी वास्तुशैली |
इतिहास
खेतड़ी महल का निर्माण भोपाल सिंह द्वारा लगभग 1770 में किया गया था। भोपाल सिंह शार्दुल सिंह का पोता था। यह पता चला है कि प्रसिद्ध खेतड़ी महल किसी भी प्रकार के दरवाजे या खिड़कियां से रहित है इसीलिए इसे हवा महल के रूप में जाना जा रहा है। जयपुर के सवाई प्रताप सिंह इस अनोखी संरचना से इतने प्रेरित हुए कि 1799 में भव्य और ऐतिहासिक हवा महल का निर्माण जयपुर में किया। खेतड़ी दूसरे सबसे धनी 'ठिकाना' जयपुर के तहत माना जाता था।.[1]
वास्तुकला
खेतड़ी महल गलियों की एक श्रृंखला के पीछे स्थित है। यह शेखावाटी कला और स्थापत्य कला के विश्वसनीय उदाहरणो में से एक माना जाता है।[2] यह मुख्य रूप से भित्ति चित्रों और उत्तम सरणियों के लिए जाना जाता है जो कि रघुनाथ मंदिर और भोपालगढ़ किले से समर्थित है। इसकी विशिष्टता हवा के सतत प्रवाह में निहित है, जो सदा ही इस संरचना के कई अन्य ऐसे इमारतों से अलग खड़ा करता है।
खंभे जो कभी संभवतया महल में हवा के सतत प्रवाह बनाए रखने के लिए जाने जाते थे अब उन्होंने विशाल दीवार संरचनाओं जगह ले ली है।
प्रवेश द्वार से महल की विशाल छत के लिए एक लंबा रैंप किसी का भी अग्रणी रूप से ध्यान आकर्षित कर सकता हैं। यह विशेष रूप से उनके घोड़ों की सवारी में राजपूतों को आसानी प्रदान करने के लिए बनायागया था। वास्तव में महल के विभिन्न स्तरों ऐसे रैंप की एक श्रृंखला के माध्यम से छत के साथ संयुक्त किया गया हैं। इन रैंप का एक अन्य उद्देश्य 'ठाकुरों' बहुत प्रयास के बिना उनके विषयों पर नीचे टकटकी करने के लिए पर्याप्त उच्च मंच प्रदान करने के लिए किया गया था। छत से दृश्य विशेष रूप से अवलोकन के लायक है। हम ठाकुरों के निजी कक्ष में खो युग चित्रों के टुकड़े के साथ दो छोटे पहरेवाली खोज कर सकते हैं। इन चित्रों में से अधिकांश प्राकृतिक पृथ्वी पिगमेंट में थे। खेतड़ी महल के अंदर, एक जटिल डिजाइन मेहराब और खंभे के साथ बहुत बड़ा सुंदर हॉल तलाश कर सकते हैं। सबसे अदभुत खोज आप खेतड़ी महल में कर सकते हैं कि यहाँ किसी भी प्रकार के कोई दरवाजे या खिड़कियां नहीं है, जो कि अन्य महलो से भिन्न है।
महल के अधिकांश कमरे मेहराब और स्तंभों की एक अच्छी तरह से डिजाइन श्रृंखला के द्वारा एक दूसरे के माध्यम से जुड़े हुए हैं। ये मेहराब और कॉलम महल के लिए एक सुंदर सममित दृश्य प्रदान करते हैं। सदियों पुरानी चूना प्लास्टर अपने स्वयं के महिमा के लिए छोड़ दिया गया है और यह एक गुलाबी चमक है। हालांकि खेतड़ी महल पर कोई संदेह नहीं कि यह शेखावाटी युग की दुर्लभ और अद्वितीय संरचनाओं में से एक है, लेकिन इस इमारत की लाचार राज्य एक दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है। इस तरह की वास्तुकला दुर्लभ है और जल्द ही लुप्त हो सकती है। इसका रखरखाव करना, इन अनोखी संरचना के संरक्षण और भित्ति चित्र निश्चित रूप से हमारे भारतीय पर्यटन और संस्कृति के लिए एक भारी बढ़ावा हो सकता है।
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